भोपाल
वीरांगना रानी दुर्गावती महिला शासकों के भारतीय स्वर्णिम इतिहास का एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है। रानी दुर्गावती ने 16वीं शताब्दी में गोंडवाना राज्य की शासक के रूप में अपने साहस और नेतृत्व के लिए ख्याति प्राप्त की। उनकी जन-कल्याणकारी व्यवस्था को सुशासन का एक उत्कृष्ट उदाहरण माना जाता है। रानी ने एक संतुलित, न्यायपूर्ण और विकासात्मक प्रणाली के रूप में शासन व्यवस्था को सुदृढ़ करते हुए गोंडवाना को एक मजबूत और समृद्ध साम्राज्य बनाया।
वीरांगना रानी दुर्गावती के शासन में गोंड संस्कृति ने देश की सांस्कृतिक विरासत को और समृद्ध किया है। उन्होंने अपनी पारंपरिक प्रथाओं से पर्यावरण के संवर्धन और संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाई है। आज़ादी के प्रति असीम प्रेम और किसी की अधीनता स्वीकार न करने की जिद और जुनून गोंड समाज की पहचान रही है। रानी दुर्गावती गोंड समुदाय के पराक्रम, भारतीय वीरता और शूरता की साक्षात् प्रतिमूर्ति थीं।
मुगल साम्राज्य की अधीनता स्वीकार न करने वाली रियासतों के लिए मुगल काल में सुरक्षित रहना बहुत कठिन माना जाता था, क्योंकि विशाल मुगल सेना के सामने युद्ध भूमि में सामना करना बहुत चुनौतीपूर्ण था। ऐसे समय में गोंडवाना साम्राज्य की संरक्षिका के रूप रानी दुर्गावती के कार्य एवं अपूर्व वीरता के साथ राज्य के विकास में किया गया अभूतपूर्व योगदान सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। रानी दुर्गावती के कार्यों और वीरता का गुण-गान आज भी जनजातीय क्षेत्रों में विभिन्न बोलियों और कई भाषाओं में किया जाता है, जो भावी पीढ़ियों के लिये प्रेरणास्पद है।
रानी दुर्गावती का संघर्ष मुगलों के खिलाफ था और वे जनजातीय संस्कृति और विरासत की सुरक्षा के प्रति कृत-संकल्पित थीं। उन्होंने मुगलों के खिलाफ एक सशक्त प्रतिरोध का आधार तैयार किया, जिसने देश के दूसरे क्षेत्रों में रहने वाले राजा-महाराजा और अधीनता स्वीकार न करने वाले अनेक समूहों को मुगल सत्ता के खिलाफ लगातार लड़ने के लिए प्रेरित किया। वर्तमान जबलपुर उनके साम्राज्य का केंद्र था। रानी ने करीब 16 वर्ष तक शासन किया। उन्होंने अपने कार्य-काल में अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ियां तथा धर्मशालाएं बनवाईं। लोक कल्याणकारी कार्यों के लिए रानी की कीर्ति दूर-दूर तक फ़ैल गई।
रानी दुर्गावती के गढ़ मंडला पर मुगल सूबेदार बाजबहादुर की बुरी नजर थी, लेकिन युद्ध में रानी दुर्गावती ने उसकी पूरी सेना का सफाया कर दिया और फिर वह कभी पलटकर नहीं आया। मुगल सेना के कई हमलों को नाकाम करने वाली रानी दुर्गावती का खौफ दिल्ली की मुगल सत्ता को भी प्रभावित करने लगा। रानी दुर्गावती को अपनी रणनीतिक योग्यता, पारम्परिक सैन्य संसाधन और सैन्य शक्ति पर इतना विश्वास था कि वे विशाल मुगल सेना से कभी विचलित नहीं हुईं। रणक्षेत्र में रानी ने मुगलों की अपेक्षा में बेहद छोटी सेना होने के बाद भी असीम वीरता का परिचय दिया। इस कारण मुगल सेना युद्ध मैदान से भाग खड़ी हुई। रानी दुर्गावती ने मुगलों के खिलाफ अपनी भूमि की रक्षा के लिए जिस अद्वितीय साहस का परिचय दिया, वह भारत की मातृशक्ति के पराक्रम, शौर्य और आत्मनिर्भरता का प्रतीक है।
रानी दुर्गावती को भारतीय इतिहास की सर्वाधिक प्रसिद्ध महारानियों और बेहतर प्रशासकों में शुमार किया जाता है। उन्होंने जिस कुशलता से राज संभाला, उसकी प्रशस्ति इतिहासकारों ने भी की है। आईन-ए-अकबरी में अबुल फ़ज़ल ने लिखा है कि "दुर्गावती के शासनकाल में गोंडवाना इतना सुव्यवस्थित और समृद्ध था कि प्रजा लगान की अदायगी-स्वर्ण मुद्राओं और हाथियों से करती थी।"
रानी दुर्गावती ने गोंडवाना की स्थिरता, विकास तथा कानून-व्यवस्था बनाये रखने के लिए प्रभावी न्याय प्रणाली की स्थापना की। उन्होंने स्व-शासन को बढ़ावा देते हुए गांवों को मजबूत किया, जिससे किसान खुशहाल हुए। रानी दुर्गावती ने कृषि, व्यापार और हस्तशिल्प को बढ़ावा दिया। उन्होंने कृषि सुधारों और सिंचाई योजनाओं को लागू किया, जिससे खाद्य उत्पादन बढ़ा। रानी दुर्गावती ने शिक्षा और संस्कृति के विकास पर अधिक जोर दिया। उन्होंने साहित्य, कला और संगीत को प्रोत्साहित किया, जिससे गोंडवाना की सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा मिला।
रानी दुर्गावती की नेतृत्व क्षमता, साहस और बलिदान, राजनैतिक समझ, सामाजिक न्याय को सुदृढ़ करने के कार्य, सांस्कृतिक समृद्धि और राज्य में स्थिरता बनाये रखने की कोशिशें अतुलनीय थी। जन-कल्याण के प्रति इसी प्रतिबद्धता और मातृभूमि की सुरक्षा के संकल्प ने रानी दुर्गावती को एक महान नेतृत्वकर्ता और शासक के रूप में इतिहास में अमर बना दिया। उनका जीवन और न्यायपूर्ण शासन आज भी प्रेरणा का ऊर्जा स्रोत है।