विदेश

फ्रांस में 31साल पहले सोने का उल्लू खोजने की प्रतियोगिता हुई थी शुरू, खजाना खोजने के साथ खत्म

पेरिस
 दुनिया की सबसे लंबी खजाना खोज का अंत हो गया। फ्रांस की एक घोषणा के बाद ऐसा लगता है कि 31 साल बाद दफन सोने के उल्लू की मूर्ति अंततः खोज ली गई है। तीन दशकों पहले फ्रांस में मायावी सुनहरे उल्लू की मूर्ति की खोज शुरू हुई थी। 1993 में यह शुरू हुई, जिसने दुनिया भर के हजारों प्रतिभागियों को मोहित कर लिया। प्रत्येक ने 11 मुश्किल पहेलियों की एक सीरीज को समझने की कोशिश की, जो उल्लू की दफन कांस्य की मूर्ति तक ले जा सकती थी। यह कोई प्राचीन खजाना नहीं है। बल्कि प्रतियोगिता के तहत रखा गया था।

खजाने की खोज को 'गोल्डन आउल' के नाम से जाना जाता है। पहेली निर्माता मैक्स वैलेन्टिन के दिमाग की यह उपज थी। फ्रांस में कहीं उन्होंने इसे दफना दिया था। इससे जुड़े जटिल सुराग 1993 में प्रकाशित एक पुस्तक में थे। खजाना खोज की आधिकारिक चैटलाइन पर किताब के चित्रकार माइकल बेकर ने गुरुवार सुबह एक पोस्ट में कहा, 'हम पुष्टि करते हैं कि गोल्डन उल्लू की प्रतिकृति कल रात खोदी गई थी, और साथ ही ऑनलाइन प्रणाली पर इसका सॉल्यूशन भेज दिया गया है। इसलिए अब किसी भी स्थान के लिए यात्रा करना और वहां जाकर खुदाई करना व्यर्थ है।'

जीतने वाले को मिलेगा सोने का उल्लू

पहेली सुलझाने वाले को अंतिम पुरस्कार के रूप में एक असली सोने का उल्लू मिलना था। इसकी कीमत 1 करोड़ 38 लाख थी। उल्लू कहां पर दफन था इसकी कोई जानकारी नहीं दी गई है। न ही इसके खोजने वाले के बारे में बताया गया है। खजाना खोजने वालों के बीच यह चर्चा का विषय बन गया है। खजाना खोजियों ने सोशल मीडिया पर अपने रिएक्शन देने शुरू कर दिए। एक शख्स ने लिखा, 'अंततः मुक्ति मिली।' दूसरे ने मजाक में कहा, 'मुझे नहीं लगा था कि यह देखने के लिए मैं जिंदा रहूंगा।'

कहां छिपा था जवाब

इस खोज में हजारों लोगों ने हिस्सा लिया। इस पूरे खेल ने किताबों, मैग्जीन और इससे जुड़ी वेबसाइटों को जन्म दिया। 2009 में वैलेन्टिन की मौत हो गई। बाद में बेकर ने इस पूरी प्रतियोगिता की जिम्मेदारी ली। हालांकि कुछ खजाना खोजी इस बात को लेकर डरे हैं कि इसकी खोज मेटल डिटेक्टर से की गई होगी। नियमों के तहत खजाना खोजने वाले को यह दिखाना होगा कि पहेलियों को उसने सही ढंग से हल किया है। न कि वह उसे सिर्फ संयोग से मिल गया। मूल रूप से दबे हुए उल्लू के बारे में बेकर को भी नहीं पता था। इसका जवाब वैलेंटाइन के परिवार के पास एक सीलबंद लिफाफे में था।

जनसम्पर्क विभाग – आरएसएस फीड

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