नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाओस की यात्रा पर हैं, जहां उन्होंने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन(EAS) को संबोधित करते हुए हिंद प्रशांत क्षेत्र और दक्षिण चीन सागर में शांति और स्थिरता पर बात की। प्रधानमंत्री मोदी ने इस मंच से हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा और शांति पर काफी जोर दिया। इससे पहले 4 नवंबर, 2019 की बात है, जब इसी अंतरराष्ट्रीय मंच से पीएम मोदी ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभर रहे मतभेदों पर बात की थी, जिसमें उन्होंने कहा था कि पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन एक मुक्त, खुला, समावेशी, पारदर्शी, नियम आधारित, शांतिपूर्ण, समृद्ध हिंद-प्रशांत क्षेत्र को बढ़ावा देने का तार्किक मंच है, जहां संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता और समुद्री कानूनों के पालन पर जोर दिया जाता है।
उस वक्त पीएम ने'इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव (IPOI)' का प्रस्ताव दिया था, जिससे हिंद-प्रशांत समुद्री क्षेत्र को सुरक्षित, भयमुक्त और स्थिर बनाया जा सके और इसके लिए इच्छुक राष्ट्रों के बीच सहयोगी ढांचा बनाया जा सके। जानते हैं मोदी के उसी भयमुक्त समुद्री क्षेत्र के विजन के बारे में, यह इतना जरूरी क्यों है। यह भी जानेंगे कि आखिर ये मंच किस तरह का है।
समुद्री सुरक्षा को लेकर क्या हैं मोदी के 7 सूत्र
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. राजीव रंजन गिरि कहते हैं कि 4 नवंबर, 2019 को भारत ने पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में अपने प्रस्ताव में समुद्री सहयोग और सहभागिता के 7 मूल पहलुओं की पहचान की थी, जो रणनीतिक रूप से मोदी के 7 तीर भी हैं। ये हैं-समुद्री सुरक्षा, समुद् इकोसिस्टम, समुद्री रिसोर्स, क्षमता निर्माण और संसाधनों का बंटवारा, आपदा जोखिम में कमी और मेनेजमेंट, विज्ञान, प्रौद्योगिकी सहयोग और कारोबारी कनेक्टिविटी व समुद्री परिवहन। पीएम मोदी के यही सूत्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन को दबदबे को कम कर सकते हैं।
क्या है पूर्वी एशिया-शिखर सम्मेलन
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन का गठन 2005 में किया गया था। यह हिंद प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख राजनीतिक, सुरक्षा और आर्थिक चुनौतियों पर रणनीतिक बातचीत और सहयोग के लिए 18 देशों का एक मंच है। इस मंच का विचार सबसे पहले 1991 में तत्कालीन मलेशियाई प्रधानमंत्री महाथिर बिन मुहम्मद ने दिया था। उन्होंने उस वक्त पूर्वी एशिया समूह बनाने की बात की थी। पहला पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन 14 दिसंबर, 2005 को कुआलालंपुर, मलेशिया में आयोजित किया गया था।
भारत इस मंच के फाउंडर मेंबर में शामिल
भारत पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के संस्थापक सदस्यों में शामिल है। पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन (ASEAN) के 10 सदस्य देश शामिल हैं-ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम के साथ ही 8 सदस्य देश ऑस्ट्रेलिया, चीन, जापान, भारत, न्यूज़ीलैंड, कोरिया गणराज्य, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका है।
दुनिया की जीडीपी में 58 फीसदी हिस्सेदारी
डॉ. राजीव रंजन गिरि के अनुसार, पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन के सदस्य विश्व की लगभग 54% आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में इनकी 58% भागीदारी है। पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन एक आसियान केंद्रित मंच है। इसकी अध्यक्षता केवल एक आसियान सदस्य द्वारा की जा सकती है।
पूर्वी एशिया-शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता कौन करता है
ASEAN का अध्यक्ष EAS का भी अध्यक्ष होता है तथा प्रतिवर्ष 10 ASEAN सदस्य देशों के मध्य बारी-बारी से इसकी अध्यक्ष की जाती है। सहयोग के प्रमुख क्षेत्र हैं-पर्यावरण और ऊर्जा, शिक्षा, वित्त, वैश्विक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे, प्राकृतिक आपदा प्रबंधन, आसियान देशों के मध्य संपर्क, आर्थिक व्यापार और सहयोग, खाद्य सुरक्षा और समुद्री सहयोग।
क्या यह अमेरिका-यूरोप के बाद तीसरा ध्रुव
भारतीय वैश्विक परिषद में रिसर्चर रहे डॉ. टेम्जेनमरेन एओ के एक लेख 'हिंद-प्रशांत और भू-राजनीतिक क्षेत्र में पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन की भूमिका' में कहा गया है कि 2021 में EAS सदस्यों ने दुनिया की करीब 54% आबादी का प्रतिनिधित्व किया। इसके सदस्य देशों ने अनुमानित रूप से 57.2 ट्रिलियन डॉलर मूल्य का कारोबार किया, जो वैश्विक जीडीपी का 59.5% है। यह मज़बूत और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं वाला क्षेत्र है। इसे अमेरिका और यूरोप के बाद विश्व अर्थव्यवस्था का तीसरा ध्रुव माना जाता है।
भारत, जापान, चीन और कोरिया वर्ल्ड इकोनॉमी में
पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन में 4 प्रमुख आर्थिक भागीदार देश जापान, चीन, भारत और कोरिया 12 उच्च रैंकिंग वाली वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं। EAS देशों के बीच वित्तीय और मौद्रिक सहयोग इतना ज्यादा है कि उनका संयुक्त विदेशी मुद्रा भंडार 3 ट्रिलियन डॉलर के पार जा चुका है।
समंदर पर है चीन की टेढ़ी नजर, भारत से दुश्मनी
भारत-जापान समेत चीन का हिंद प्रशांत क्षेत्र में तकरीबन हर देश के साथ कुछ न कुछ विवाद बना हुआ है। दरअसल, चीन के मंसूबे नापाक हैं। उसकी दक्षिण चीन सागर से लेकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपना प्रभुत्व बढ़ाने की टेढ़ी नजर है। इसके अलावा, इस क्षेत्र में चीन कारोबार और निवेश के क्षेत्र में भी भारत को अपना प्रतिद्वंद्वी मानता है।
समुद्री सुरक्षा समेत मुक्त कारोबार पर भी जोर
डॉ. टेम्जेनमरेन एओ कहते हैं कि EAS का मकसद समुद्री सुरक्षा के साथ-साथ समंदर में मुक्त कारोबारी क्षेत्र विकसित करना भी है। यही वजह है कि पीएम मोदी समंदर को भयमुक्त बनाना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि समुद्री सुरक्षा होने से हिंद-प्रशांत देशों के बीच समुद्री कारोबार ज्यादा बढ़ेगा। दरअसल, इस इलाके में क्षेत्रीय शक्तियों के बीच सैन्य बजट में बढ़ोतरी शांति, सुरक्षा और समृद्धि के व्यापक मकसद को कमजोर करता है।
भारत के लिये EAS की क्या अहमियत है?
भारत के लिए EAS इसके तेजी से बढ़ते आर्थिक और राजनीतिक ताकत को मान्यता देने वाला मंच है। ASEAN और अन्य बहुपक्षीय देशों के साथ बहुआयामी संबंध बनाने और द्विपक्षीय संबंधों को मज़बूत करने के लिये भारत ने अपनी एक्ट ईस्ट पॉलिसी (Act East Policies) पर बल दिया है जिसके लिये EAS महत्त्वपूर्ण साबित होगा।
मुद्री क्षेत्र में भारत बन सकता है बड़ा पॉवर
दक्षिण चीन सागर में चीन की दबंगई और उसके बढ़ते निवेश की प्रकृति ने आसियन देशों में भारत को एक ऐसी संभावित शक्ति के रूप में देखने के लिये प्रेरित किया है जो चीन को संतुलित कर सकता है। भारत समुद्री क्षेत्र में बड़ा पॉवर बन सकता है। भारत की शक्ति सेवा क्षेत्र और सूचना-प्रौद्योगिकी में है, वहीं जापान के पास एक मजबूत पूंजी आधार भी है।