नई दिल्ली.
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के आंकड़ों के अनुसार, बीते चार साल में उन्हें 47 हजार से ज्यादा शिकायतें मिली हैं। इनमें जातीय अत्याचार, भूमि विवाद और सरकारी नौकरी से संबंधित विवाद ही मुख्य मुद्दे हैं। आरटीआई के जवाब में यह जानकारी मिली है। एनसीएससी के आंकड़ों के अनुसार, साल 2020-21 में उन्हें 11,917 शिकायतें मिलीं।
वहीं 2021-22 में 13,964, और 2022-23 में 12,402 और इस साल यानी 2024 में 9,550 शिकायतें मिल चुकी हैं। एनसीएससी के अध्यक्ष किशोर मकवाना ने बताया कि आयोग को मिलने वाली सबसे आम शिकायतें अनुसूचित जाति समुदाय के खिलाफ अत्याचार से संबंधित हैं, इसके बाद भूमि विवाद और सरकारी क्षेत्र में सेवाओं से संबंधित मुद्दे हैं। उन्होंने कहा, 'शिकायतों को तेजी से दूर करने के लिए, अगले महीने से, मैं या मेरे सदस्य राज्य कार्यालयों का दौरा करेंगे और वहां लोगों के सामने आने वाली समस्याओं को देखेंगे।' मकवाना ने कहा कि वह लोगों की समस्याओं को दूर करने के लिए सप्ताह में चार बार सुनवाई कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश से सबसे ज्यादा शिकायतें
एनसीएससी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सभी राज्यों में सबसे ज्यादा शिकायतें उत्तर प्रदेश से दर्ज की गई हैं। अधिकारी ने बताया कि आयोग को हर दिन 200-300 शिकायतें मिलती हैं और उनमें से कई का कुछ ही दिनों में समाधान हो जाता है, इसलिए यहां देखा गया डेटा ज्यादातर उन शिकायतों का है जिनका समाधान होने की प्रक्रिया चल रही है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के खिलाफ अत्याचारों पर राष्ट्रीय हेल्पलाइन के आंकड़ों के अनुसार, 6,02,177 कॉल प्राप्त हुईं। इनमें से कुल शिकायतों की संख्या 5,843 थी, जिनमें से 1,784 का समाधान किया जा चुका है। उत्तर प्रदेश से आधे से अधिक कॉल यानी 3,10,623 प्राप्त हुई हैं। इस हेल्पलाइन की निगरानी सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा की जाती है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत नवीनतम सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, अनुसूचित जाति के खिलाफ अत्याचार के अधिकांश मामले 13 राज्यों में केंद्रित थे, जहां 2022 में सभी मामलों का 97.7 प्रतिशत दर्ज किया गया। 2022 में उत्तर प्रदेश में 12,287 मामले दर्ज हुए, जो कुल मामलों का 23.78 प्रतिशत हिस्सा थे, इसके बाद राजस्थान में 8,651 (16.75 प्रतिशत) और मध्य प्रदेश में 7,732 (14.97 प्रतिशत) थे। जाति अत्याचार के महत्वपूर्ण मामलों वाले अन्य राज्य बिहार में 6,799 (13.16 प्रतिशत), ओडिशा में 3,576 (6.93 प्रतिशत) और महाराष्ट्र में 2,706 (5.24 प्रतिशत) थे। इन छह राज्यों में कुल मामलों का लगभग 81 प्रतिशत हिस्सा था।