धनतेरस के पीछे का रहस्य – पौराणिक प्रसंगों के अनुसार एक राजकुमार की किस्मत में उसके विवाह के चौथे दिन की मृत्यु लिखी गई थी। जब उनकी शादी हुई तो उनकी नवविवाहिता पत्नी ने अपने सभी सोने-आशय के खंड, सिक्के, गोदाम-जवाहरात आदि के घर शयनकक्ष के सभी दरवाजों पर चढ़कर महल का कोना-कोना करवा प्रकाशित किया।
निश्चित समय पर जब मृत्यु के देवता यम सर्प का रूप धारण करके आए तो सोने-अरे की चमक से उनकी आंखें चुंधिया निकलीं और उन्हें कुछ भी नहीं मिला, क्योंकि उनके पति के प्राणों की रक्षा हुई, तब से उस दिन धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा। प्रतिष्ठा के अनुसार धनतेरस के दिन ताज्जुब, जवाहरात, सोना, चांदी या अपनी राशि के शुभ धातु के पोर्शन के अनुसार किसी व्यक्ति के भाग्य को चमकाने की क्षमता होती है।
धनतेरस नाम कैसे जाना जाता है – देवताओं और दानवों द्वारा जाने वाले समुद्र मंथ के दौरान देवताओं के वैद्य धन्वंतरि अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे। धनतेरस नाम नीजी धन्वंतरि के नाम से प्रचलित हुआ। कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। धन का अर्थ है धन-धान्य और तेरस का अर्थ है युवा माह की तेरहवीं तिथि, यह दीपावली से दो दिन पहले पंचपर्व का शुभारम्भ होता है। इस दिन धन्वंतरि पूजन, पोषाहार-आभूषण आदि का क्रीड़ा, यम दीपदान, कुबेर पूजन सहित अन्य कार्य निकाले जाते हैं। धन त्रयोदशी के दिन संकल परिवार सदस्यों की रक्षा एवं मृत्यु भय सुरक्षा सहायता घर के बाहर दीपदान करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि धनतेरस की शुभ खरीददारी करने पर धन के देवता कुबेर अपनी संपत्ति से शुभ वस्तुओं के साथ लक्ष्मी आपके घर तक पहुंच जाते हैं, इसलिए धनतेरस के दिन लोग कुछ न कुछ खरीददारी करते हैं।