भोपाल
प्रदेश में लगभग 20 वर्ष बाद एक बार फिर पैथोलॉजी केंद्रों पर कसावट होने जा रही है। अब बिना पैथोलॉजिस्ट के कोई भी जांच केंद्र प्रदेश में संचालित नहीं होगा। एक पैथोलॉजिस्ट मात्र दो जांच केंद्रों में अपनी सेवाएं दे सकता है। इसमें एक तो उसका खुद का पैथोलॉजी केंद्र और दूसरा किसी और का हो सकता है। यदि खुद का केंद्र नहीं है तो अन्य दो केंद्रों में वह सेवाएं दे सकता है।
पैथोलॉजिस्टों को 15 दिन के भीतर अपने जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी को बताना होगा कि वह किन केंद्रों में सेवाएं दे रहे हैं या देना चाहते हैं।
लैब टेक्नीशियन के भरोसे चल रहे केंद्र
लोक स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव संदीप यादव ने शुक्रवार को इस संबंध में सभी जिलों के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारियों को निर्देश जारी किए हैं। अभी प्रदेश में बड़ी संख्या में पैथोलॉजी केंद्र लैब टेक्नीशियन ही चला रहे हैं। वह किसी पैथोलॉजिस्ट का डिजिटल सिग्नेचर जांच में प्रिंट कर देते हैं।
जांच की गुणवत्ता भरोसे की नहीं होने के कारण नुकसान रोगी को होता है। कई बार दो अलग-अलग जांच केंद्रों की रिपोर्ट अलग-अलग होने की शिकायतें भी आती हैं। कुछ लैब टेक्नीशियन बिना डिजिटल सिग्नेचर के ही रिपोर्ट दे रहे हैं। कई अस्पतालों में भी पैथोलॉजिस्ट नहीं हैं। अब ऐसे केंद्र बंद हो जाएंगे।
21 साल पहले कोर्ट ने दी थी व्यवस्था
बता दें कि वर्ष 2003 में एक याचिका पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने यह व्यवस्था दी थी कि बिना पैथोलॉजिस्ट कोई भी जांच केंद्र संचालित नहीं होना चाहिए। इसके बाद तत्कालीन स्वास्थ्य आयुक्त रश्मि अरुण शमी ने आदेश जारी किया था कि एक पैथोलॉजिस्ट मात्र दो जांच केंद्रों में अपनी सेवाएं दे सकेगा। धीरे-धीरे इस व्यवस्था में शिथिलता आ गई। प्रदेश में ढाई हजार पैथोलॉजी केंद्र संचालित हो रहे हैं, जबकि इनमें पैथोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी और बायोकेमिस्ट्री के निजी और सरकारी मिलाकर लगभग छह सौ डॉक्टर ही होंगे। प्रमुख सचिव ने सैंपल कलेक्शन सेंटर के लिए भी पैथोलॉजिस्ट अनिवार्य किया है।