छतरपुर
छतरपुर जिले के लखनगुवां गांव में वाटरसेड के माध्यम से बकरी पालन को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। यह कहानी उसी बदलाव की है, जो न केवल गाँव के लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने में मदद कर रहा है, बल्कि उनके जीवन में आशा की किरण भी जगा रहा है। जिसमें मुख्य रूप से बकरी पालन में वाटरसेड की भूमिका है। गांव की अधिकांश महिलाएं आर्थिक रूप से निर्भर हैं और उन्हें अपने परिवारों की भलाई के लिए महत्वपूर्ण स्रोतों की आवश्यकता है। इस विचार के तहत, वाटरसेड के माध्यम से स्व-सहायता समूहों का गठन किया गया, जिसमें स्थानीय महिलाएं शामिल थीं।
वाटर सेड के माध्यम से ओम साई स्व-सहायता समूह को 7 नग, मां दुर्गा स्व-सहायता समूह को 12 यूनिट एवं श्री गणवेश स्व-सहायता समूह को 12 यूनिट बकरी प्रदान की। इन बकरियों की नस्ल सिरोही, बरबरी एवं देशी है विशेष रूप से दूध एवं मांस उत्पादन के लिए प्रजनित की गई थी, जिससे उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की दिशा में बड़े कदम उठाए जा सके। सिर्फ बकरियाँ ही नहीं, बल्कि आजीविका मिशन ने रिवोलिंग फंड और सामुदायिक निवेश निधि के माध्यम से इन महिलाओं की मदद की। इस फंड का उपयोग उचित प्रबंधन के साथ अपने व्यवसाय को बढ़ाने में किया जा सकता था। सामुदायिक निवेश निधि ने उन्हें अपने व्यवसाय में निवेश करने का एक और रास्ता प्रदान किया, जिससे वे अपने आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त कर सकें।
* उन्नत बकरी पालन के लिए पशु सखी की भूमिका
जब महिलाएँ अपने बकरी पालन के कार्य में जुट गईं, तब यह महसूस किया गया कि उन्हें प्रशिक्षण की आवश्यकता है। इसलिए, गाँव में पशु सखी की नियुक्ति की गई, जो बकरी पालन में आवश्यक ज्ञान और प्रशिक्षण प्रदान करती थी। पशु सखी गाँव की एक आत्मनिर्भर महिला थीं, जिन्होंने पशुओं की देखभाल, टीकाकरण, और खानपान का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया था। पशु सखी ने गाँव में टीकाकरण कैंप का आयोजन किया, जिसमें सभी समूह की महिलाएँ शामिल हुईं। इस कैंप में उन्हें यह सिखाया गया कि बकरियों को कैसे स्वस्थ रखा जाए, उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए क्या उपाय किए जाएं, और उन्हें कौन-कौन सी बीमारियों से बचाने की आवश्यकता है। महिलाओं को यह समझ में आया कि सही टीकाकरण से उन्हें न केवल बकरियों की सेहत सुधारने में मदद मिलेगी, बल्कि यह उनके आर्थिक लाभ में भी योगदान देगा।
इसके आगे, पशु सखी ने भोजन प्रबंधन का प्रशिक्षण भी दिया। उन्होंने बताया कि बकरियों को कौन-कौन से खाद्य पदार्थ दिए जा सकते हैं ताकि उनकी दूध एवं मांस उत्पादन क्षमता बढ़ सके। महिलाएँ अब जानती थीं कि पौष्टिक भोजन का मतलब केवल खाना ही नहीं, बल्कि उसकी मात्रा और गुणवत्ता भी होती है। इसके अलावा, बकरियों की देखभाल के प्रति उचित ध्यान रखने की दिशा में भी उन्हें प्रशिक्षण दिया गया। उन्हें बताया गया कि बकरियों को किस प्रकार की जगह पर रखा जाए, ताकि उन्हें पर्याप्त जगह मिले। बकरियों की सफाई और स्वास्थ्य भी उतना ही जरूरी था जितना कि उनका भोजन।
ग्राम लखनगुवां में समूह सदस्यों को बकरी पालन से एक अच्छी आय प्राप्त होने लगी है जिसमें एक महिला को औसतन मासिक आय 10 हजार रूपए की होने लगी। इस प्रकार, ग्राम लखनगुवां में बकरी पालन के इस स्व-सहायता समूह की कहानी एक प्रेरणा बनी है।