Farm Laws Farmers Protest: तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने और एमएसपी के लिए कानूनी गारंटी देने की मांग के साथ हजारों किसान काफी दिनों से राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
कृषि कानूनों को लेकर करीब दो महीने से भी ज्यादा वक्त से चल रहे किसान आंदोलन को सुलझाने के लिए सेवानिवृत्त नौकरशाहों और न्यायाधीशों के एक समूह ने केंद्र सरकार के सुझावों की तारीफ की है. इसके साथ ही उनलोगों ने विवाद को खत्म करने के लिए एक सलाह देते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानूनी भरोसा देने और तीनों कृषि कानूनों को 18 महीनों के लिए निलंबित करने की बात भी कही है. इतना ही इन 180 पूर्व नौकरशाहों और न्यायाधीशों ने सरकार पर लग रहे उन आरोपों को लेकर भी बयान दिया है, जिसमें कहा जा रहा है कि किसान देशविरोधी हैं. इन्होंने साफ-साफ शब्दों में कहा कि केंद्र ने किसी भी स्तर पर असली और वास्तविक किसानों को देशविरोधी नहीं बताया है, लेकिन कुछ लोग इसका गलत फायदा उठाने में लगे हैं.
सेवानिवृत्त नौकरशाहों और न्यायाधीशों के इस समूह ने गणतंत्र दिवस के दिन राजधानी दिल्ली में हुई हिंसा को लेकर सरकार की प्रतिक्रिया पर कहा कि प्रशांसन ने उनलोगों के साथ काफी संयम बरता जो किसान आंदोलन की आड़ में हिंसा करना चाहते थे. इनलोगों ने 75 पूर्व नौकरशाहों के उस बयान की भी कड़ी आलोचना की जिसमें यह कहा गया था कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन के प्रति केन्द्र सरकार का रवैया शुरुआत से ही प्रतिकूल और टकराव भरा रहा है.
सेवानिवृत्त नौकरशाहों और न्यायाधीशों के इस सूमह ने 75 पूर्व नौकरशाहों को ‘मसखरों का समूह’ बताया और कहा कि उनलोगों का मकसद कृषि कानूनों को लेकर भ्रम पैदा करना है. उन्होंने पूर्व नौकरशाहों पर निशाना साधते हुए उनके खुले पत्र को राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया. 180 सेवानिवृत्त नौकरशाहों और न्यायाधीशों के इस समूह में पूर्व सीबीआई निदेशक नागेश्वर राव, एसएसबी के पूर्व महानिदेशक एवं त्रिपुरा के पूर्व पुलिस प्रमुख बीएल वोहरा, राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अनिल देव सिंह, केरल के पूर्व मुख्य सचिव आनंद बोस, जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी एस पी वैद, एयर वाइस मार्शल (सेवानिवृत्त) आर पी मिश्रा जैसे लोग शामिल हैं.
180 लोगों के इस सूमह ने किसानों से भी अपील करते हुए कहा कि इस मुद्दे को सुलझाने के लिए उन्हें सरकार के साथ बातचीत के लिए आगे आना चाहिए. गौरतलब है कि तीन कृषि कानूनों को वापस लिए जाने और फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए कानूनी गारंटी देने की मांग के साथ पंजाब, हरियाणा और देश के विभिन्न हिस्सों से आए हजारों किसान काफी दिनों से राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं.
किसान आंदोलन पर 75 पूर्व नौकरशाहों ने क्या कहा था
पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने बीते 5 फरवरी को एक खुले पत्र में कहा था कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के प्रदर्शन के प्रति केन्द्र सरकार का रवैया शुरुआत से ही प्रतिकूल और टकराव भरा रहा है. दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, जुलियो रिबेरियो और अरुणा रॉय सहित 75 पूर्व नौकरशाहों द्वारा हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है कि गैर-राजनीतिक किसानों को ‘ऐसे गैर-जिम्मेदार प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जा रहा है जिनका उपहास किया जाना चाहिए, जिनकी छवि खराब की जानी चाहिए और जिन्हें हराया जाना चाहिए.’ पत्र में कहा गया है, ‘ऐसे रवैये से कभी कोई समाधान नहीं निकलेगा.’ उन्होंने कहा है कि अगर भारत सरकार वाकई मैत्रीपूर्ण समाधान चाहती है तो उसे आधे मन से कदम उठाने के बजाए कानूनों को वापस ले लेना चाहिए और फिर संभावित समाधान के बारे में सोचना चाहिए.
क्या है मामला
कृषि क्षेत्र में बड़े सुधार के तौर पर सरकार ने पिछले साल सितंबर में तीनों कृषि कानूनों को लागू किया था. सरकार ने कहा था कि इन कानूनों के बाद बिचौलिए की भूमिका खत्म हो जाएगी और किसानों को देश में कहीं पर भी अपने उत्पाद को बेचने की अनुमति होगी. वहीं, किसान तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं. प्रदर्शन कर रहे किसानों का दावा है कि ये कानून उद्योग जगत को फायदा पहुंचाने के लिए लाए गए हैं और इनसे मंडी और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था खत्म हो जाएगी.