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West Bengal Election 2021: मुस्लिमों में ‘कनफ्यूजन’ का फायदा उठा सकती है बीजेपी, TMC को हो सकता है बड़ा नुकसान

पश्चिम बंगाल के चुनाव में मुस्लिमों की भूमिका को लेकर राजनीतिक दलों के बीच कन्फयूजन की स्थिति बनी हुई है. इस बार की परिस्थिति ऐसी है कि जिस मुस्लिम वोट बैंक को गढ़ मानते हुए टीएमसी आगे बढ़ रही है, उसमें सेंध लगाने के लिए कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन पहले ही सामने था

पश्चिम बंगाल (West Bengal Election 2021) की राजनीति में मुस्लिम वोटर्स की भूमिका बहुत बड़ी है. राज्य में मुस्लिम आबादी की संख्या करीब 30 फीसदी है, जो राष्ट्रीय औसत से करीब दो गुना है. पिछली बार ममता बनर्जी की जीत में इस मुस्लिम आबादी ने बड़ी भूमिका निभाई थी. लेकिन इस बार की परिस्थिति ऐसी है कि जिस मुस्लिम वोट बैंक को गढ़ मानते हुए टीएमसी आगे बढ़ रही है, उसमें सेंध लगाने के लिए कांग्रेस और लेफ्ट का गठबंधन पहले ही सामने था. अब फुरफुरा शरीफ के पीरजादा और ओवैसी भी सामने आ गए हैं. यही नहीं बंगाल की मुस्लिम आबादी भी मुख्य रूप से दो जगह बंटी हुई है, एक उर्दू बोलने वाले और दूसरा बंगाली (बांग्ला) बोलने वाले.

राज्य के चुनाव में मुस्लिमों की भूमिका को लेकर राजनीतिक दलों के बीच कन्फयूजन की स्थिति बनी हुई है. दरअसल अब से पहले तक राज्य के मुस्लिम ममता बनर्जी के साथ रहते थे. लेकिन कुछ पाकेट जैसे मालदा-मुर्शिदाबाद में कांग्रेस को भी उनका बड़ा साथ मिलता रहा है. बनर्जी की पार्टी के लिए मुस्लिमों की एकजुटता बेहद जरूरी है. इस चुनाव में उर्दू बोलने वाले मुस्लिम पूरी तरह से ममता बनर्जी के साथ दिखाई दे रहे हैं. लेकिन अब फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने भी लेफ्ट के साथ ताल ठोक दी है. सिद्दीकी बांग्ला बोलने वाले मुस्लिम हैं और काफी प्रभाव भी रखते हैं. यानी साफ है कि सिद्दीकी लेफ्ट के साथ मिलकर अगर मजबूती से चुनाव लड़ेंगे तो मुस्लिम वोट बटेंगे और इसका सीधा नुकसान ममता बनर्जी को होगा. ऐसी स्थिति में ये कयास लगाना मुश्किल है कि किसे ज्यादा नुकसान होगा, ममता को या लेफ्ट-पीरजादा को लेकिन ये साफ है कि बीजेपी को इसका फायदा मिलेगा.

अब्बास सिद्दीकी ने  मालदा और मुर्शिदाबाद में करीब 10 सीटों की मांग की
हालांकि कांग्रेस, लेफ्ट और पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की पार्टी इंडियन सेक्यूलर फ्रंट यानी आईएसएफ के गठबंधन में भी सब ठीक नहीं चल रहा है. रविवार को ब्रिगेड परेड ग्राउंड में उसकी झलक साफ दिखाई दी. दरअसल अब्बास सिद्दीकी ने कांग्रेस के गढ़ मालदा और मुर्शिदाबाद में करीब 10 सीटों की मांग की है. कांग्रेस इतनी सीट देने को तैयार नहीं है, क्योंकि कांग्रेस को लगता है कि ये उसका मजबूत इलाका है. यहां अगर उसने आईएसएफ के लिए सीट छोड़ दी, तो उसका प्रदर्शन और भी खराब हो जाएगा. रैली के मंच से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी की मौजूदगी में उन्होंने अपनी पार्टी के लिए 30 सीटें छोड़ने के लिए लेफ्ट का आभार जताया, लेकिन कांग्रेस के बारे में नहीं बोला.
कांग्रेस को नसीहत देते हुए उन्होंने ये भी कहा कि उन्हें भीख नहीं चाहिए, अधिकार चाहिए. सिद्दीकी तो यहां तक कहते हैं कि उनकी पार्टी के साथ गठबंधन करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की सहमति है, लेकिन स्थानीय नेता समस्या पैदा कर रहे हैं. जाहिर है कि उनका इशारा कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष की तरफ ही था.

सीमावर्ती इलाकों के मुस्लिम उर्दू बोलने वाले
वहीं इस मसले पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा था कि कांग्रेस किसी धमकी के आधार पर फैसला नहीं लेगी. हालांकि ये जानकारी जरूर मिली है कि सिद्दीकी को लेकर लेफ्ट और कांग्रेस के नेता अब आपस में जल्द फैसला लेंगे, क्योंकि उनका दबाव बढ़ता जा रहा है. असददुद्दीन औवेसी भी अपनी ताल ठोके हुए हैं. बिहार चुनाव में पांच सीटे जीतकर उन्होंने वैसे ही सबकी नींद उड़ा दी थी. यहां बंगाल में बिहार के सीमावर्ती इलाकों में उनकी पार्टी के अच्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद है. खास बात ये है कि इन सीमावर्ती इलाकों के मुस्लिम उर्दू बोलने वाले हैं.

बिहार के सीमांचल से लगने वाले इलाकों जैसे दक्षिण दिनाजपुर, उत्तरी दिनाजपुर, मालदा, रायगंज और 24 परगना जिलों में उर्दू बोलने वाले मुस्लिमों की संख्या अच्छी खासी है. सीमांचल से आने वाले सैयद शाहनवाज हुसैन को भी बीजेपी ने अभी हाल ही में बिहार में मंत्री बनाकर एक बड़ा राजनीतिक संदेश भी देने की कोशिश की है.

हालांकि सूबे में आक्रामक चुनाव प्रचार कर रही बीजेपी इस पूरे घटनाक्रम पर करीब से नजर रखे हुए हैं. उसे लग रहा है कि जितना मुस्लिम वोटर्स में कन्फयूजन होगी और उनके वोट अलग-अलग जगह जाएंगे, उसका सीधा फायदा उन्हें ही मिलेगा. एक ऐसा उदाहरण लोकसभा चुनाव के दौरान देखने को मिला था. रायगंज सीट मुस्लिम बहुल सीट है, जहां से लेफ्ट के बड़े नेता मोहम्मद सलीम चुनाव लड़ रहे थे. सामने कांग्रेस से दीपा दास मुंशी और टीएमसी से कन्हैया लाल अग्रवाल भी उम्मीदवार थे. लेकिन बीजेपी की देबाश्री चौधरी ने उन्हें मात दे दी थी क्योंकि मुस्लिम वोट तीन जगह बंट गए थे.


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