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झारखंड में प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम का बुरा हाल, बैंक की देनदारी से भाग रहे लाभुक

प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम यानी PMEGP का झारखंड में बुरा हाल है. इस योजना का लाभ लेने वाले लाभुकों ने बैंक की देनदारी से मुंह मोड़ लिया है.

झारखंड में प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (PMEGP) में NPA लाभुकों की संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है. आपको जानकर ये हैरानी होगी कि झारखंड में NPA का औसतन आंकड़ा 38 प्रतिशत तक पहुंच गया है. पंजाब नेशनल बैंक NPA की सूची में सबसे ऊपर 80 प्रतिशत के पास तक पहुंच गया है. राज्य के बड़े शहर भी इस फेहरिस्त में सबसे ऊपर है और बढ़ते NPA के आंकड़ों ने इस योजना की सफलता पर सवाल खड़ा कर दिया है. अब सवाल ये उठने लगे हैं कि आखिर ऐसे में कैसे प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम का सपना साकार होगा.

बढ़ते NPA के आंकड़े कर रहे कुछ इशारा

रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम यानी PMEGP का झारखंड में बुरा हाल है. इस योजना का लाभ लेने वाले लाभुकों ने बैंक की देनदारी से मुंह मोड़ लिया है. हालात कुछ ऐसे हैं कि समय के साथ इस योजना से लाभ लेने वाले लाभुक NPA की सूची शामिल होते चले जा रहे हैं. आपको जानकर ये हैरानी होगी कि राज्य के कुछ बैंक ऐसे भी है जिनके यहां NPA का आंकड़ा 80 प्रतिशत तक पहुंच गया है.

बैंक और एनपीए के आंकड़ें (31 दिसंबर 2020 तक)
राज्य के 17 हजार 109 लाभुकों का चयन
पंजाब नेशनल बैंक के लाभुक 3 हजार 526, NPA का आंकड़ा 80.48 प्रतिशत
बैंक ऑफ इंडिया के लाभुक 4 हजार 812, NPA का आंकड़ा 30.27 प्रतिशत
स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के लाभुक 3 हजार 271, NPA का आंकड़ा 27.93 प्रतिशत
इंडिया बैंक के लाभुक 1 हजार 146, NPA का आंकड़ा 39.64 प्रतिशत
सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया के लाभुक 758, NPA का आंकड़ा 63.01 प्रतिशत
झारखंड राज्य ग्रामीण बैंक 1 हजार 326, NPA का आंकड़ा 27.14 प्रतिशत
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के लाभुक 651, NPA का आंकड़ा 48.84 प्रतिशत
UCO बैंक का आंकड़ा 386, NPA का आंकड़ा 44.98 प्रतिशत

ये तमाम आंकड़ें बताने के लिये काफी है कि प्रधानमंत्री रोजगार सृजन योजना किस दिशा में जा रही है. झारखंड SLBC के उपमहाप्रबंधक गणेश टोप्पो का मानना है कि ऐसा लाभुकों के अंदर जागरूकता की कमी की वजह से हो रहा है, जो आवेदन बैंकों के पास आये उसी के आधार पर इस योजना के तहत राशि दी गई. अब लाभुक सब्सिडी के बाद का पैसा देने को तैयार नहीं हैं.

दरअसल इस योजना की सफलता में हर किसी का महत्वपूर्ण योगदान होना चाहिये और ऐसा नहीं होने की वजह से ही परेशान कर देने वाले आंकड़े सामने आए हैं. हालांकि समय के साथ इसमें सुधार हो रहे हैं.

जिलों का हाल

दरअसल इस महत्वाकांक्षी योजना का उद्देश्य 25 से 35 प्रतिशत तक की सब्सिडी पर 25 लाख रुपया तक का लोन उपलब्ध कराना था. ये वैसे लोगों और खास कर बेरोजगार नौजवानों के लिये भी एक ऐसा सुनहरा अवसर था, जब वो खुद का कारोबार या व्यवसाय कर आगे बढ़ सकते थे. कोरोना काल में इस योजना के तहत लोन उपलब्ध कराए गए. सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि बड़े शहरों में लोन लेने वाले लाभुक भी NPA की सूची में सबके ऊपर है.

राजधानी रांची NPA की सूची में सबके ऊपर है, रांची में NPA का आंकड़ा 62.48 प्रतिशत है.
धनबाद में NPA का आंकड़ा 37.04 प्रतिशत
चतरा में NPA का आंकड़ा 42.64 प्रतिशत
गढ़वा में NPA का आंकड़ा 50.55 प्रतिशत
गुमला में NPA का आंकड़ा 49.04 प्रतिशत
सिमडेगा में NPA का आंकड़ा 50.34 प्रतिशत
पलामू में NPA का आंकड़ा 49.70 प्रतिशत

‘बैंक भी कम जिम्मेवार नहीं’

झारखंड चैम्बर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष प्रवीण कुमार जैन के अनुसार लाभुक इस योजना के मूल उद्देश्य से भटक गए हैं. सरकार ने जिस महत्वकांक्षी योजना के तहत उन्हें बढ़ने का मौका दिया वो उस मौके का फायदा उठाने के बजाय खुद के लिये और दूसरों के लिये इस योजना दरवाजा बंद कर रहे हैं. इस स्थिति के लिये बैंक भी कम जिम्मेवार नहीं है उन्हें लोन रिकवरी के लिये समय – समय पर दबाव बनाने की जरूरत थी. इस तरह की योजनाओं के सफल संचालन के लिये एक कमिटी के गठन भी आवश्यक रूप से करना चाहिये था, जो नहीं हुआ.

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