मतदाताओं को राइट टू रिजेक्ट यानी सभी प्रत्याशियों को नकारने का अधिकार देने पर सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है. आज कोर्ट ने इस पर केंद्र और चुनाव आयोग को नोटिस जारी किया. याचिका में कहा गया है कि अगर किसी चुनाव में नोटा को सबसे ज़्यादा वोट पड़ें, तो चुनाव रद्द माना जाना चाहिए. उस सीट पर नए सिरे से चुनाव होना चाहिए.
बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका में बताया गया है कि 1999 में पहली बार विधि आयोग ने मतदाताओं को राइट टू रिजेक्ट देने की सिफारिश की थी. इसके बाद चुनाव आयोग ने कई बार मतदाताओं को यह अधिकार देने की पैरवी की. यहां तक कि खुद सरकार की तरफ से चुनाव सुधार पर गठित एक कमिटी ने 2010 में नोटा और राइट टू रिजेक्ट का प्रावधान करने के पक्ष में रिपोर्ट दी. लेकिन कोई कदम नहीं उठाया गया.
नोटा विकल्प की व्यवहारिक रूप से कोई अहमियत नहीं- याचिकाकर्ता
याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ वकील मेनका गुरुस्वामी ने कोर्ट को बताया कि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने वोटर को ‘इनमें से कोई नहीं’ यानी NOTA का बटन दबाने का अधिकार दिया. कोर्ट ने तब यह माना था कि जो मतदाता किसी भी उम्मीदवार को पसंद न करने के चलते मतदान के लिए नहीं आते हैं, उन्हें यह बताने का विकल्प दिया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद नोटा का विकल्प तो लोगों को दे दिया गया, लेकिन व्यवहारिक रूप से इसकी कोई अहमियत नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि इसका चुनाव परिणाम पर कोई असर नहीं पड़ता है.
वरिष्ठ वकील ने कहा कि अगर किसी क्षेत्र में 100 में से 99 वोट नोटा को पड़ जाए, तब भी उससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. एक वोट पाने वाले प्रत्याशी को विजेता घोषित कर दिया जाएगा. चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता और राजनीतिक पार्टियों को अच्छे उम्मीदवार मैदान में उतारने को प्रेरित करने के लिए राइट टू रिजेक्ट की व्यवस्था बनाई जानी चाहिए. कोर्ट अगर चाहे तो इसके लिए नोटा को पड़ने वाले वोटों का प्रतिशत भी तय कर सकता है. जैसे अगर 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट नोटा को पड़ें, तो चुनाव रद्द घोषित किया जाए.
याचिका में उठाया गया सवाल महत्वपूर्ण है- सुप्रीम कोर्ट
तीन जजों की बेंच की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े ने सवाल किया, “मान लीजिए अगर बहुत सारी सीटों पर चुनाव रद्द करना पड़ जाए, तो संसद का गठन कैसे हो पाएगा?” मेनका गुरुस्वामी ने जवाब दिया, “जिन सीटों पर चुनाव रद्द घोषित किया जाए, वहां तुरंत नए सिरे से चुनाव करवाए जाएं. उन उम्मीदवारों को दोबारा लड़ने की अनुमति न दी जाए, जिन्हें मतदाताओं ने खारिज कर दिया है.” इस पर बेंच ने कहा कि यह उसके सवाल का सटीक जवाब नहीं है. लेकिन फिर भी याचिका में उठाया गया सवाल महत्वपूर्ण है. इसलिए इस पर नोटिस जारी किया जा रहा है. अब कोर्ट सरकार और चुनाव आयोग का जवाब देखने के बाद मसले पर आगे विचार करेगा.