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म्यांमार तख्तापलट: आखिर पड़ोसी देश के बिगड़े हालात ने भारत की चिंताएं क्यों बढ़ा दी?

म्यांमार (Myanmar) में तख्तापलट का विरोध जारी है. इसकी आंच भारत तक भी आई है. फरवरी में हुई इस घटना के बाद नई दिल्ली (New Delhi) के सामने नई कूटनीतिक चुनौतियां आई हैं. साथ ही उत्तर-पूर्व (North-East) में नया शरणार्थी संकट खड़ा हो गया है. म्यांमार में सैन्य शासन (Military Rule) के बाद से खासी हिंसा हुई है. भारत और संयुक्त राष्ट्र लगातार हिंसा की निंदा कर रहे हैं. ऐसे में हालात को देखते हुए भारत को संतुलन बनाना जरूरी हो गया है.

भले ही भारत यह कह रहा है कि वे ‘खासे चिंतित’ हैं और ‘हालात को करीब से देख रहे हैं’, लेकिन उसके दिमाग में चीन (China) फैक्टर भी बना हुआ है. खास बात है कि म्यांमार में प्रदर्शन कर रहे लोग इस तख्तापलट में बीजिंग के शामिल होने का आरोप लगा रहे हैं. अब भारत अपने पड़ोसी देश में चीन का प्रभाव पसंद नहीं करेगा. इतना ही नहीं म्यांमार के सैन्य शासन के साथ संबंध रखना, भारत के लिए उत्तर-पूर्वी विद्रोहियों पर नकेल कसने का भी प्रयास है.

शरणार्थी संकट
26 मार्च के एक सर्कुलर में कहा गया था कि ‘जिला प्रशासन को खाना और आश्रय देने के लिए कैंप शुरू नहीं करने चाहिए.’ साथ ही सिविल सोसाइटी और एनजीओ को भी इसी तरह के आदेश दिए गए थे. यह कहा गया था कि शरण मांगने वालों को ‘शालीनता के साथ वापस भेज दें.’ हालांकि, मणिपुर गृहविभाग ने इस विवादित आदेश को वापस ले लिया था. इस आदेश की सोशल मीडिया पर खासी आलोचना हुई थी.



सरकार के मुताबिक, भारत यूएन कन्वेंशन ऑन स्टेटस ऑफ रिफ्यूजी और 1967 प्रोटोकॉल हस्ताक्षरकर्ता नहीं है. उन्होंने कहा है कि 2011 में जारी हुई एसओपी का पालन शरणार्थी होने का दावा करने समेत ऐसे मामलों में किया जाएगा. रोहिंग्या मामले में भी भारत का यही पक्ष रहा है . सरकारों ने यह बार-बार कहा है कि भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर उत्पीड़न से भागने वालों को शरण देने के लिए बाध्य नहीं है

मिजोरम की यह चुनौती खास
म्यांमार के चिन राज्य से तियाउ नदी के जरिए भारत आ रहे लोग नई तरह की चुनौती पेश कर रहे हैं. ये लोग मिजोरम की बाहुल मिजो समुदाय से जुड़े हुए हैं. भारत में उनके पारिवारिक संबंध हैं और यही वजह है कि इस समुदाय पर शरणार्थियों को छोड़ने का दबाव बनाना मुश्किल हो रहा है. म्यांमार की बॉर्डर अथॉरिटीज ने हाल ही में चम्पाई प्रशासन को पत्र लिखकर कम से कम 8 पुलिसकर्मियों को सौंपने की मांग की है. पत्र में कहा गया है कि ‘दोनों देशों के बीच संबंध बरकरार रखने के लिए’ ऐसा किया जाना चाहिए. ऐसे में यह भारत के लिए खासी चुनौती बना हुआ है. भारत हिंसा की निंदा के बावजूद जुंटा को निराश नहीं करना चाहता.

कयास लगाए जा रहे हैं कि तख्तापलट में चीन का समर्थन शामिल है. क्योंकि विश्वभर में निंदा के बावजूद चीन ने इसपर प्रतिक्रिया नहीं दी है. हालांकि, चीन ने यैंगॉन दूतावास के बाहर जारी प्रदर्शन के बीच तख्तापलट का समर्थन करने की बात से इनकार किया है. साथ ही भारत उत्तर-पूर्व में विद्रोहियों के जोखिम को लेकर भी चिंतित है. साल 2015 में भारत ने म्यांमार में सेना के साथ मिलकर विद्रोहियों के खिलाफ स्ट्राइक की थी. बीते साल महामारी के दौरान म्यांमार ने विशेष फ्लाइट से 22 विद्रोहियों को वापस भेजा था. खास बात है कि उस समय अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का संचालन नहीं हो रहा था.

म्यांमार में तख्तापलट के दिन भी भारत ने कहा था ‘हमारा मानना है कि कानून का शासन और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बरकरार रखना चाहिए. हम स्थिति पर करीब से नजर रख रहे हैं.’ 26 फरवरी को UNGA यानि यूनाइटेड नेशन्स जनरल असेंबली ब्रीफिंग में सरकार ने कहा था कि ‘भारत म्यांमार के साथ जमीन और समुद्री सीमा साझा करता है और स्थिरता और शांति बनाए रखने के लिए काम करता है. हाल ही में म्यांमार में हुए घटनाक्रम पर भारत द्वारा कड़ी निगरानी रखी जा रही है. हम इस बात से गहराई से चिंतित हैं कि म्यांमार ने लोकतंत्र की दिशा में पिछले दशकों में जो लाभ प्राप्त किए हैं, वे कम नहीं होने चाहिए.’

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