भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख (Eastern Ladakh) के गलवान में हुए ख़ूनी संघर्ष (Galwan Valley Clash) को एक साल पूरा हो गया है. भारतीय सेना पहले से ही मज़बूत थी और पिछले एक साल में भारतीय सेना को उन्नत हथियारों और बाकी जरूरी सामानों से लैस कर दिया. पिछले साल 15 जून के गलवान में जो हुआ उसने एलएसी पर जारी विवाद को फिर से हवा दे दी है. एलएसी पर 7 सितंबर 2020 को फायरिंग की घटना ने 45 साल से जारी शांति को खत्म कर दिया. पिछले एक साल में भारत ने लद्दाख में चीन की हेकड़ी को खत्म करने के लिए अपनी सेना को इस क़दर तैयार कर दिया कि अब चीन को भारत पर दादागिरी दिखाने के लिए शायद कोई और ही उपाय सोचना होगा क्योंकि सामरिक और
कूटनीतिक स्तर पर भारत ने चीन की कमर तोड़ दी मजबूरन चीन को अपनी हेकड़ी छोड़कर बातचीत की मेज पर आना पड़ा.
वैसे तो तकरीबन 4000 किलोमीटर की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर छुटपुट फेसऑफ की घटनाओं का होना आम था लेकिन इस बार चीन कुछ और ही मंशा के साथ तिब्बत के इलाके में अपने सैनिक को इकट्ठा कर रहा था. दरअसल हर साल सर्दियां खत्म होने के साथ साथ भारत और चीन अपने अपने इलाके में युद्धाभ्यास करते हैं. पिछले साल भी एसा ही हो रहा था लेकिन एक चीज़ जो सबसे चौंकाने वाली थी कि अभ्यास के खत्म होने के बाद भी उसकी सेना लद्दाख के दूसरी और तिब्बत में मौजूद थी. भारतीय सेना लगातार चीनी सेना की गतिविधियों पर नजर बनाए हुए थी. पांच मई 2020 को पैंगॉन्ग झील के क़रीब दोनों देशों की सेनाओं के बीच झड़प की ख़बरें आईं. सिक्किम के नाकुला में भी दोनों देशो की सेना पेट्रोलिंग के दौरान आमने सामने आ गई. नौबत धक्का-मुक्की तक आ पहुंची. तनाव लगातार बढ़ रहा था और सौनिकों की तादाद भी बढ़ने लगी.
भारतीय एजेंसियों को इस बात का एहसास हो गया था कि चीन लंबी लड़ाई के लिए अपनी तैनाती को बढ़ा रहा है. हालातों को देखते हुए दिल्ली में एक बड़ी बैठक हुई और तय हुआ की भारतीय वायुसेना को शामिल कर के ग्रांउड फोर्स को आर मज़बूत किया गया. पहले चरण में पहली प्राथमिकता थी कि सैनिको को कॉम्बैट सपोर्ट मुहैया कराना. मई के दूसरे हफ्ते से ही भारतीय वायुसेना के सभी ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ़्ट जिसमें C-130 j , c-17 , IL 76 , AN-32 देश के अलग-अलग बेस से सैन्य साजो सामान को लद्दाख और एलएसी के पास बने एडवांसड लैंडिंग ग्राउंड तक पहुंचाना शुरू किया गया. ऊंचे इलाकों में MI-17 और चिनूक हैलिकॉप्टरों के जरिए सैनिकों की तैनाती को भी तेज कर दिया गया था. दूसरे चरण में निगरानी के लिए रडार और अन्य उपकरणों तो भी तैनात किया गया हालांकि पहले से ही ये उपकरण और रडार उन इलाकों में मौजूद थे लेकिन अतिरिक्त उपकरण भी ले जाए गए. जिसका मक़सद था कि चीन के हर एक चाल पर पैनी नजर बनाए रखना. जिसके लिये लो लेवल लाइट वेट रडार सिस्टम और आउंटेन रडार सिस्टम का इस्तेमाल किया गया.
महज़ कुछ दिन के भीतर भारतीय सेना की मौजूदगी को चीनी सेना की तैनाती के बराबर कर दिया गया. यानी की मिरर डेप्लॉयमेंट. वैसे को लद्दाख में भारतीय सेना की टैंक रेजिमेंट काफी पहले से ही मौजूद है लेकिन चीनी टैंकों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए T-90 और T-72 की अतिरिक्त रेजिमेंट, आर्टलरी गन, एयर डिफेंस सिस्टम, गोला बारूद, रसद, स्पेशल टैंट आदी को पूर्वी लद्दाख में पहुंचा दिया. सामरिक के अलावा कूटनीतिक तौर पर भी भारत ने चीन को बैकफुट में डाल दिया. दोनों देशों के बीच एलएसी पर किसी भी तरह का विवाद सुलझाने के लिए सेना के स्थानीय कमांडरों के बीच बातचीत होती थी लेकिन जिस तरह से विवाद बड़ा हो चुका था पहली बार कोर कमॉडर स्तर यानी लेफ्टिनेंट जनरल स्तर के अधिकारियों को बैठना पड़ा.
पहली बैठक में दोनों देशों ने आम सहमति बनाते हुए गलवान, पैंगॉन्ग, गोगरा, हॉटस्प्रिंग से आंशिक तौर डिसएंगेजमट की प्रक्रिया शुरू भी की लेकिन 15-16 जून की रात को गलवान में इसकी तरह की जारी प्रक्रिया की तस्दीक़ करने पहुंचे. भारतीय सेना के अधिकारी कर्नल संतोष बाबू पर चीनी सौनिकों ने जानलेवा हमला कर दिया. उसके बाद पूरी रात भर दोनों देशों के सैनिकों के बीच मारपीट होती रही लेकिन एक राउंड भी फायर नहीं हुआ. चीन के सैनिक तेज धार वाले हथियार, लोहे की छड़ें, डंडे जिन पर तार बंधा हुआ था उनका इस्तेमाल करना शुरू किया. भारतीय सेना भी पीछे नहीं हटी और चीनी सैनिकों तो जमकर पीटा. नतीजा ये हुआ की इस ख़ूनी संघर्ष में भारतीय सेना के बीस सैनिक शहीद हो गए जबकि चीनी सेना के 40 से 45 सैनिकों को भारतीय सेना ने मार गिराया. गलवान की हिंसा के बाद से रक्षा मंत्रालय ने भारतीय सेना को कुछ विशेष अधिकार दिए. जिनमें सबसे महत्वपूर्ण था लोकल कमान्डरों को स्थिति को साधते हुए खुद फैसला लेना. इससे पहले एलएसी पर किसी भी तनाव या झड़प पर अगर भारतयी सेना को कार्रवाई करनी होती तो उसके लिये ब्रिगेड हेडक्वाटर, कोर हेडक्वाटर, कमांड हेडक्वाटर और दिल्ली में सेना के मुख्यालय से अनुमति लेनी पड़ती थी.
पैंगॉन्ग में चीनी बोट को तोड़ के लिए तैयार भारतीय स्टील बोट
पूर्वी लद्दाख के पैंगॉन्ग त्सो झील में चीन हमेशा से पेट्रोलिंग के दौरान अपनी बोट के जरिए भारतीय बोट को टक्कर मारकर नुकसान पहुंचाने और डुबोने की कोशिश में रहता था. अब उन बोट को टक्कर देने के लिए नई स्टील बोट तैयार की गई है. जिनकी तैनाती शुरू भी हो चुकी है. ये बोट्स नई तकनीक से लैस है जिसे स्पेशल स्टील और स्पेशल धातु से बनाया गया है और अत्याधुनिक सर्विलांस और कम्युनिकेशन लगाए गए है. नई बोट में जवानों के बैठने की भी ज़्यादा जगह है बोट में क़रीब 25-30 जवान एक साथ बैठ सकते हैं. सुरक्षित रहकर जवान दुश्मन पर फायरिंग कर सकेंगे. साथ ही फायरिंग के लिये इनमें नाव के सामने हल्की मशीनगन लगाने के लिए सुरक्षित जगह भी है इन सभी बोट को फास्ट ट्रैक प्रोक्योरमेंट के तहत बनाया गया है.
पैंगॉन्ग में चीनी बोट को तोड़ के लिए तैयार भारतीय स्टील बोट
पूर्वी लद्दाख के पैंगॉन्ग त्सो झील में चीन हमेशा से पेट्रोलिंग के दौरान अपनी बोट के जरिए भारतीय बोट को टक्कर मारकर नुकसान पहुंचाने और डुबोने की कोशिश में रहता था. अब उन बोट को टक्कर देने के लिए नई स्टील बोट तैयार की गई है. जिनकी तैनाती शुरू भी हो चुकी है. ये बोट्स नई तकनीक से लैस है जिसे स्पेशल स्टील और स्पेशल धातु से बनाया गया है और अत्याधुनिक सर्विलांस और कम्युनिकेशन लगाए गए है. नई बोट में जवानों के बैठने की भी ज़्यादा जगह है बोट में क़रीब 25-30 जवान एक साथ बैठ सकते हैं. सुरक्षित रहकर जवान दुश्मन पर फायरिंग कर सकेंगे. साथ ही फायरिंग के लिये इनमें नाव के सामने हल्की मशीनगन लगाने के लिए सुरक्षित जगह भी है इन सभी बोट को फास्ट ट्रैक प्रोक्योरमेंट के तहत बनाया गया है.