अफगानिस्तान (Afghanistan) को तालिबान (Taliban) ने फतह तो लिया है, लेकिन एक्सपर्ट्स का मानना है कि असली चुनौतियां अब शुरू होंगी. तालिबान के लिए अफगानिस्तान में सबसे बड़ा सिरदर्द देश में शांति स्थापित करना होगा. भले ही यहां अलग-अलग विचारधारा और कट्टरपंथी सोच वाले लोग रणनीतिक मामलों में बाहरी लोगों के खिलाफ एकजुट हो जाएं, लेकिन असली खतरा खुद अंदर की गुटबाजी से है. किसी भी अन्य बड़े राजनीतिक संगठन की तरह कुछ दशक पुराने इस्लामिक संगठन तालिबान के अंदर भी कई गुट बने हुए हैं.
तेजी से फैल रही हैं अफवाहें
सोमवार को अफवाह उड़ाई गई कि राष्ट्रपति महल में प्रतिद्वंद्वी गुटों में गोलाबारी हुई है और इसमें उप प्रधानमंत्री मुल्ला बरादर मारा गया. हालांकि बाद में मुल्ला ने एक ऑडिया जारी कर अपने जिंदा होने का सबूत दिया. अफगानिस्तान मामलों के एक्सपर्ट नियामतुल्लाह इब्राहिमी ने बताया कि एक अंतरिम सरकार के गठन से पहले ही तनाव की स्थिति बन गई थी. इसमें प्रमुख भूूमिकाएं तालिबान के पुराने सदस्यों के बीच तय की गई थीं, साथ में बरादर, हक्कानी, अलकायदा और आईएसआई को भी शामिल किया गया.
हक्कानी नेटवर्क पावरफुल, लेकिन उसका नुकसान भी
1990 के दौर में भले ही तालिबान का दबदबा रहा हो, लेकिन मौजूदा समय में हक्कानी नेटवर्क की ताकत और रसूख ज्यादा है. वह अलकायदा और पाकिस्तान की आईएसआई से गहरे रिश्ते रखते हुए मजबूत सैन्य शक्ति है. हक्कानी परिवार का मुखिया सिराजुद्दीन हक्कानी अमेरिका की आतंकियों की लिस्ट में है और उस पर 10 मिलियन डॉलर का इनाम है. उसकी ताकत के प्रभाव में उसे गृह मंत्रालय का जिम्मा दिया गया. लेकिन इसमें दिक्कत ये है कि हक्कानी के सरकार में रहते हुए तालिबान के पश्चिमी देशों से संबंध कभी ठीक नहीं हो सकेंगे. जैसा कि हाल में अमेरिका ने अफगानिस्तान की संपत्ति और विदेशी मुद्रा भंडार फ्रीज कर दिया है.