जानेमाने पत्रकार और चिंतक एमजे अकबर ने पिछले दिनों इसी बात को लेकर एक लंबा लेख लिखा. ओपन मैग्जीन डॉट कॉम (openthemagazine.com) पर छपे इस लेख का शीर्षक है- कैसे जिन्ना ने मुस्लिमों को बांटा (How Jinnah Divided Muslims). इस लेख की शुरुआत में ही अकबर सवाल उठाते हैं कि क्या ईरान से वर्मा तक फैले भारत को बांटकर जिन्ना ने इस उपमहाद्वीप के मुस्लिमों का कल्याण किया या फिर उन्हें तबाह कर दिया?
अकबर आगे लिखते हैं कि जिन्ना हमेशा यह इस बात पर जोर देते थे कि भारत का बंटवारा इस्माल को बचाने के लिए किया जा रहा है. लेकिन उनके पास अपने कल्पना के पाकिस्तान के विचार को स्पष्ट करने के लिए कोई तर्क नहीं था. उनके पास अपने काल्पनिक राष्ट्र के लिए न तो कोई भौगोलिक क्षेत्र था और नहीं कोई विचार. जबकि किसी भी राष्ट्र की स्थापना के लिए ये दो चीजें बेहद जरूरी हैं.
लॉर्ड वैवेल और लॉर्ड माउंटबेटेन की राय नहीं मानी
भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटेन और उनके पूर्ववर्ती लार्ड वैवेल के काफी समझाने के बाद भी जिन्ना अपनी जिद से नहीं हिले. इस कारण माउंटबेटेन ने उनको सनकी व्यक्ति तक कह दिया. अकबर के मुताबिक माउंटबेटेन ने 11 अप्रैल 1947 को आधिकारिक तौर पर जिन्ना से कहा कि एक संयुक्त भारत ज्यादा प्रगतिशील और ज्यादा ताकतवर राष्ट्र साबित होगा. लेकिन जिन्ना ने माउंटबेटेन की बात को अनसुना कर दिया. माउंटबेटेन ने उनसे कहा कि आप जो कर रहे हैं कि उससे मुसलमानों को ऐसी क्षति पहुंचेगी जिसकी भरपाई कभी नहीं जा सकेगी.
एम जे अकबर लिखते हैं कि माउंटबेटेन ने बिल्कुल सही कहा था. जिन्ना ने मुस्लिमों का ऐसा नुकसान किया जिसकी कभी भरपाई नहीं जा सकती. जिन्ना का एक ही उपलब्धि थी. वो यह कि भारतीय मुसलमानों को तीन राष्ट्रों में बांट देना. इस तरह से उसने इस समुदाय की एक संयुक्त भारत के विकास और निर्माण में संभावित भूमिका को खत्म कर दिया.
कुतर्क में माहिर थे जिन्ना
एमजे अकबर लिखते हैं कि जिन्ना ने तर्क दिया था कि एक राष्ट्र के अंदर मुस्लिम, हिंदुओं के साथ नहीं रह सकते. लेकिन उनके इस तर्क का ऐतिहासिक और भौगोलिक रूप से कोई आधार नहीं था. इसी कारण वह पाकिस्तान को लेकर कोई खांका नहीं बना पाए. इसका कोई आधार ही नहीं था क्योंकि इस उपमहाद्वीप के हर कोने और हर भाषा के लोगों में मुस्लिम भी शामिल थे. ऐसे में इन्हें कैसे एक सीमा के अंदर बांधा जा सकता था.
एक विचित्र देश था पाकिस्तान
जिन्ना का पाकिस्तान दुनिया के नक्शे पर एक विचित्र देश था. उसके दो हिस्से थे जो भारत के पूरब और पश्चिम दोनों तरफ थे. पूर्वी पाकिस्तान (मौजूदा बांग्लादेश) और पाकिस्तान. ऐसे में उसके पास दिल नहीं था.
विरोधाभाषों से भरा था जिन्ना का जीवन
गुजराती शिया मुस्लिम परिवार में जन्में जिन्ना का रहन सहन पूरी तरह से पश्चिमी था. उनका तौर-तरीक ब्रिटिश जैसा था तो उनका व्यवहार पारसियों जैसा. वह एक निश्चित वर्ग से नीचे को लोगों को छूने तक से बचते थे. लेकिन राजनीतिक गुनाभाग में उनके महारथ हासिल थी.
मार्च 1940 में की पाकिस्तान की मांग
जिन्ना को टीबी की बीमारी थी. उन्हें 1940 में ही पता चल गया था कि उनकी जिंदगी लंबी नहीं है. मार्च 1940 में वह बहुत बीमार थे लेकिन मुस्लिम लीग की एक बैठक में शामिल होने बंबई से ट्रेन से लाहौर गए. इस दौरान वह दिल्ली में वायसराय से भी मिले.
जब जिन्ना ने कहा- मैंने और मेरे स्टेनोग्राफर ने बनाया पाकिस्तान
पाकिस्तान के निर्माण के बाद जिन्ना ने एक बार कहा था कि उन्होंने और उनके स्टेनोग्राफर ने एक नए राष्ट्र की स्थापना की है. दरअसल, जिन्ना एक ऐसे नेता थे जिनकी पहुंच ब्रिटिश सरकार तक थी. वह अपनी हर एक चाल की कीमत वसूलते थे. उन्होंने 1939 के द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश सरकार का समर्थन किया और इसके बदले में उन्होंने उनसे कड़ी कीमत वसूली. उन्होंने अगले करीब 8 सालों तक ऐसी चालें चली जिसमें कांग्रेस और ब्रिटिश हुकुमत उनकी शर्तों को मानने पर मजबूर हुई और एक नए राष्ट्र की स्थापना हुई.