तालिबान (Taliban) को अफगानिस्तान (Afghanistan) की सत्ता में आए लगभग छह महीने का वक्त हो चुका है. लेकिन अभी तक इसे मान्यता नहीं मिल पाई है. वहीं, तालिबान के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी (Amir Khan Muttaqi) ने समाचार एजेंसी एएफपी को दिए एक इंटरव्यू में कहा कि तालिबान अंतरराष्ट्रीय मान्यता की ओर बढ़ रहा है. लेकिन अफगानिस्तान के नए शासक जो भी रियायतें देंगे. वह उनकी शर्तों पर होने वाला है. हाल ही में तालिबान के नेताओं ने पश्चिमी मुल्कों से नॉर्वे (Norway) की राजधानी ओस्लो (Oslo) में चर्चा की थी.
आमिर खान मुत्ताकी ने अमेरिका से गुजारिश की कि वे मानवीय संकट से निपटने में मदद करने के लिए अफगानिस्तान की संपत्तियों को जारी कर दें. अगस्त में तालिबान की अफगानिस्तान में सत्ता में वापसी होने के बाद से अभी तक किसी भी देश ने उसे औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी है. लेकिन मुत्ताकी ने कहा कि अफगानिस्तान के नए शासक धीरे-धीरे अंतरराष्ट्रीय स्वीकारिता हासिल कर रहे हैं. उन्होंने कहा, ‘मान्यता मिलने के प्रोसेस में. हम उस टारगेट के करीब आ गए हैं. ये हमारा अधिकार है. ये अफगान लोगों का अधिकार है. हम अपना राजनीतिक संघर्ष और प्रयास तब तक जारी रखेंगे जब तक हमें हमारा अधिकार नहीं मिल जाता.’
अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ एक्टिव रूप से जुड़े हैं: मुत्ताकी
पिछले महीने नॉर्वे में हुई वार्ता दशकों में पश्चिमी धरती पर हुई तालिबान की पहली वार्ता थी. नॉर्वे ने जोर देकर कहा कि बैठक का उद्देश्य कट्टरपंथी इस्लामी समूह को औपचारिक मान्यता देना नहीं देना था. लेकिन तालिबान ने इसे इस तरह से पेश किया, जैसे उन्हें मान्यता देने की बात कही गई. मुत्ताकी ने कहा कि उनकी सरकार अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ एक्टिव रूप से जुड़ी हुई है. ये एक स्पष्ट संकेत है कि हमारी स्वीकारिता बढ़ रही है. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय हमारे साथ बातचीत करना चाहता है. इसमें हमारी अच्छी उपलब्धियां रही हैं.
अंतरराष्ट्रीय दबाव में नहीं लेंगे कोई भी फैसला
तालिबान के विदेश मंत्री मुत्ताकी ने कहा कि काबुल में कई देश अपने दूतावास ऑपरेट कर रहे हैं, और जल्द ही अन्य के खुलने की उम्मीद है. उन्होंने कहा कि हमें उम्मीद है कि कुछ यूरोपीय और अरब देशों के दूतावास भी खुलेंगे. लेकिन मुत्ताकी ने कहा कि तालिबान ने मानवाधिकार जैसे क्षेत्रों में जो भी रियायतें दी जाएंगी. वह उनकी शर्तों पर होंगी न कि अंतरराष्ट्रीय दबाव के परिणामस्वरूप. उन्होंने कहा, हम अपने देश में जो कर रहे हैं. वह इसलिए नहीं है कि हमें शर्तों को पूरा करना है और न ही हम किसी के दबाव में कर रहे हैं. हम इसे अपनी योजना और नीति के अनुसार कर रहे हैं.