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तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने पीएम मोदी और चीफ जस्टिस के सामने रखी 3 मांगें, चेन्नई में सुप्रीम कोर्ट की स्थायी शाखा बने

सुप्रीम कोर्ट में सभी राज्यों की समान भागीदारी नहीं मिलने को गंभीरता से लेते हुए तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना को पत्र लिखा है. इस पत्र में उन्होंने चेन्नई, कोलकाता और बंबई में सुप्रीम कोर्ट की स्थायी शाखा बनाने की मांग की है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति में देश के सभी क्षेत्रों की समान भागीदारी और तमिल को चेन्नई हाईकोर्ट की आधिकारिक भाषा बनाने की मांग की है. उन्होंने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति में देश के सभी क्षेत्रों की समान भागीदारी नहीं हो पाती है. इस महान देश की विविधतावादी और बहुलतावादी समाज का समान प्रतिनिधित्व सुप्रीम कोर्ट में दिखना चाहिए. इसलिए जब सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति की जाए तो सभी क्षेत्रों की समान भागीदारी सुनिश्चित की जाए.

सुप्रीम कोर्ट में देश के सभी हिस्सों की भागीदारी हो
एमके स्टालिन ने पत्र में लिखा है, संघीय ढांचे में हमारा संविधान हमारे लोकतंत्र की आधारशिला है. लोकतंत्र का हमारा तीनों स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिक इन्हीं ढांचे के अनुरूप बने हैं. न्यायपालिका के संस्कार के अनुपालन का दायित्व सुप्रीम कोर्ट के उपर है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट का अनुसरण सभी कोर्ट और प्राधिकार के लिए करना अनिवार्य है. ऐसे में हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हमारे संविधान में निहित सहकारी संघवाद की झलक न्यायपालिका की शाखाओं में भी दिखनी चाहिए. इस संदर्भ में यह और जरूरी हो जाता है कि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्टों की संरचना में हमारे महान देश के विविधतावादी और बहुलतावादी समाज को प्रतिबिंबित झलके. लेकिन पिछले कुछ सालों से हमने देखा है कि उच्च न्यायपालिका में हमारे विविधतावादी समाज के अनुरूप प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है. न्याय की गुणवत्ता के लिए न्यायपालिका में यह विविधता अनिवार्य है. इसलिए सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति में देश के सभी हिस्सों की समान भागीदारी सुनिश्चित की जाए.

देश में तीन जगहों पर हो सुप्रीम कोर्ट की शाखाएं
एम के स्टालिन ने अपने पत्र में लिखा है कि न्याय तक सबकी पहुंच हो, इसके लिए हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें संविधान का अनुच्छेद 32 दिया है. लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में इस अनुच्छेद के तहत अपने मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने की सुविधा देश के सभी कोने के नागरिकों तक नहीं है. इसका सबसे बड़ा कारण आर्थिक स्थिति है. जो लोग संपन्न हैं और जिनकी नई दिल्ली में नजदीकी हैं, उन्हें यहां तक पहुंचने की सुविधा है लेकिन नई दिल्ली से दूर देश के कई कोने के लोगों के लिए यह मुश्किल हो जाता है. खासकर दक्षिणी, पश्चिमी और पूर्वी प्रदेशों के नागरिकों के लिए. इसलिए इन क्षेत्रों के नागरिकों की सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच नहीं हो पाती है. देश में 25 हाई कोर्ट है लेकिन आंकड़ें बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट तक अधिकांश मामले दिल्ली-एनसीआर तक के ही पहुंच पाते हैं. हमारे संविधान सभा में बहस के दौरान 1950 में ही इस बात को भांप लिया गया था कि न्याय तक सबकी पहुंच के लिए सुप्रीम कोर्ट की शाखाओं को देश के अन्य हिस्सों तक ले जाया जाना चाहिए. इसलिए अनुच्छेद 130 में इस बात की व्यवस्था दी गई है कि सुप्रीम कोर्ट देश के अन्य जगहों पर भी बैठ सकता है. इसलिए आज देश की जरूरत है कि सुप्रीम कोर्ट की स्थायी शाखाएं स्थापित हो. इसलिए मेरी आपसे गुजारिश है कि चेन्नई, कोलकाता, मुंबई में भी सुप्रीम कोर्ट की स्थायी शाखाएं खोली जाए.

तमिल को तमिलनाडु हाईकोर्ट की भाषा बनाई जाए
एम के स्टालिन ने तीसरी मांग करते हुए लिखा है कि आम आदमी तक न्याय का समान वितरण के लिए उसे अपनी भाषा में न्याय को पहुंचाना अत्यंत आवश्यक है. राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में यह सुविधा उपलब्ध है लेकिन बिडंबना यह है कि अन्य राज्यों में हाई कोर्ट की भाषा वहां की जनता की बोली में उपलब्ध नहीं है. इससे सहकारी संघवाद की झलक नहीं मिलती. क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करने के लिए आधुनिक तकनीकी की मदद से अब कोई बहुत बड़ी दिक्कत नहीं है लेकिन अगर आधिकारिक भाषा अपनी भाषा में नहीं होती है, तो इससे दिक्कत होती है. हाल ही में चीफ जस्टिस ने कहा था कि न्यायपालिका की कार्यवाही शादी के मंत्रों की तरह नहीं होनी चाहिए जो किसी की समझ में न आए. इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता है कि तमिल को तमिलनाडु हाईकोर्ट की आधिकारिक भाषा बनाने के लिए उचित कदम उठाया जाए.

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