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RBI ने चेताया, हड़बड़ी में सरकारी बैंकों के निजीकरण से फायदे की बजाय होगा नुकसान

भारतीय रिजर्व बैंक के बुलेटिन (RBI Bulletin) में छपे पेपर में कहा गया है कि हड़बड़ी में बड़े पैमाने पर सरकारी बैंकों का निजीकरण (Bank’s Privatization) करना ठीक नहीं होगा. इससे फायदे की बजाय नुकसान ज्‍यादा होगा. 18 अगस्‍त को जारी इस बुलेटिन में कहा गया है कि अगर देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक वित्तीय सेवाएं पहुंचाने के लक्ष्य को ध्यान में रखा जाए तो हमारे सरकारी बैंकों ने प्राइवेट बैंकों से कहीं बेहतर काम किया है.

मनीकंट्रोलकी एक रिपोर्ट के अनुसार, बुलेटिन में छपे एक पेपर में सरकारी बैंकों के निजीकरण के फायदे और नुकसानों का विश्‍लेषण किया गया है. पेपर में बताया गया है कि भारत जैसी विकासशील अर्थव्‍यवस्‍था को बैंकों के निजीकरण से किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. पेपर में कहा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने निजी बैंकों के मुकाबले बेहतर वित्‍तीय समावेशन, बेहतर ऋण प्रणाली, और बेहतर दक्षता का प्रदर्शन किया है.

निजी बैंक ग्रामीण क्षेत्र में असफल
पेपर में कहा गया है कि प्राइवेट बैंक ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में लोगों को बैंकिंग सेवाएं देने में अब तक असफल रहे हैं. इन क्षेत्रों के लोग बैंकिंग के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों पर ही निर्भर है. इतना ही नहीं, सरकारी बैंकों ने आर्थिक दबाव के बीच मॉनेटरी पॉलिसी को सफल बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

आरबीआई के बु‍लेटिन में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी से उपजे हालात का सरकारी बैंकों ने काफी मज़बूती से सामना किया है. हाल के सालों में देश के सरकारी बैंकों पर बाजार का भरोसा काफी बढ़ा है. ऐसे में इनका एकसाथ बड़े पैमाने पर निजीकरण करना नुकसानदेह साबित हो सकता है.

मुनाफा कमाना नहीं मकसद
आरबीआई ने अपने बुलेटिन में लिखा है कि पब्लिक सेक्टर बैंक सिर्फ अधिकतम मुनाफा कमाने के मकसद से काम नहीं करते. इन्‍होंने ज्यादा से ज्यादा लोगों तक वित्तीय सेवाएं पहुंचाने के जरूरी लक्ष्य को भी अपने कामकाज में जिस तरह से समाहित किया है, वैसा निजी क्षेत्र के बैंक नहीं कर पाए हैं. रिजर्व बैंक का मानना है कि अब देश इस आर्थिक सोच से काफी आगे निकल आया है कि निजीकरण ही हर मर्ज की दवा है. अब हम इस बात को मानने लगे हैं कि इस दिशा में आगे बढ़ते समय ज्यादा सावधानी और सोच-विचार से काम लेना जरूरी है.

जनसम्पर्क विभाग – आरएसएस फीड

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