भौगोलिक दृष्टि से कोरबा (Korba) जिले का पाली-तानाखार (Pali-Tanakhar) विधानसभा क्षेत्र जितना जटिल है, यहां की सियासी करवट भी कब कहां बदल जाए ये कहना हमेशा से मुश्किल रहा है. आदिवासियों के इस गढ़ में जनता ने न केवल बड़ी पार्टियों को अपना प्रतिनिधित्व सौंपा, बल्कि रूझान एक बार ऐसा बदला कि निदर्लीय उम्मीदवारों की उम्मीद जीत गई. इस सीट पर मतदाताओं ने अपने अधिकार का प्रयोग कर तृतीय दल को भी सिर आंखों पर बिठाया है. बीजेपी (BJP) की बात करें तो पिछले 4 चुनाव में यहां उसे तीसरे स्थान पर आकर ही संतोष करना पड़ा है.
पाली-तानाखार विधानसभा सीट कोरबा जिले की काफी महत्वपूर्ण सीट में से एक है. अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित यह सीट काफी पुरानी है. यहां पहला चुनाव साल 1957 में हुआ था. तब यह सीट केवल तानाखार विधानसभा सीट के नाम से जानी जाती थी. पहले चुनाव में कांग्रेस ने यहां जीत अर्जित की थी. कांग्रेस की यज्ञ सैनी कुमारी ने निदर्लीय प्रत्याशी आदित्य प्रताप सिंह को 1231 वोट से हराया था. शुरुआत से ही इस सीट पर निदलीय प्रत्याशी ने कड़ी टक्कर दी थी. यह सिलसिला बाद के चुनाव में भी बना रहा. अब तक पाली-तानाखार सीट में कुल 14 चुनाव हुए हैं. इस सीट से सर्वाधिक 8 बार कांग्रेस ने जीत दर्ज की है. इसी तरह बीजेपी ने यहां से दो बार चुनाव जीता है. गोड़वाना गणतंत्र पार्टी, भारतीय जनसंघ जनता पार्टी ने एक-एक चुनाव जीता है.
अलग राज्य बनने के बाद कांग्रेस का रहा दबदबा
साल 1972 के चुनाव में तानाखार सीट से निदर्लीय प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी. कीर्ति कुमार सिंह ने इस सीट से चुनाव जीता था. वहीं सन 1998 में गोड़वाना गणतंत्र पार्टी के हीरासिंह मरकाम जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. मध्यप्रदेश से अलग होकर जब छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ तो साल 2003 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए. तब से लेकर अब तक कुल 4 विधानसभा चुनाव हुए हैं. जिसमें इस सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा है. साल 2003, 2008 और 2013 में इस सीट से कांग्रेस प्रत्याशी रामदयाल उइके ने जीत दर्ज की. इसी तरह 2018 में कांग्रेस के मोहितराम केरकेट्टा ने चुनाव जीता था.
इस पार्टी से रहा कांग्रेस का मुकाबला
इन चार चुनावों में कांग्रेस का सीधा मुकाबला बीजेपी से नहीं बल्कि हीरासिंह मरकाम की गोड़वाना गणतंत्र पार्टी से थी. लगातार चार चुनाव में हीरासिंह मरकाम दूसरे पायदान पर रहे थे. पाली-तानाखार के वोटों का समीकरण कैसे बदलता है यह समझना राजनीतिक पंडितों के लिए भी कतई आसान नहीं रहा है. यही वजह है कि इन चार चुनावों में भाजपा को तीसरे स्थान पर ही संतोष करना पड़ रहा है.
रामपुर में तीसरी पार्टी बदल देती है गेम
कोरबा जिले के ही रामपुर विधानसभा सीट पर अब तक 13 चुनाव हुए हैं. इन चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस के प्रत्याशी ही चुनाव जीतते रहे हैं. वर्ष 1977 के चुनाव में ननकीराम कंवर ने जनता पार्टी से चुनाव लड़कर जीत अर्जित की थी. उसके बाद से कांग्रेस और बीजेपी के बीच सीधी टक्कर हुई है. हालांकि इस सीट पर तीसरी पार्टी गेम चेंज करने का काम कर देती है. वर्ष 2018 के चुनाव में बीजेपी और जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के प्रत्याशी फूलसिंह राठिया के बीच कड़ा मुकाबला हुआ था. अंत में ननकी की जीत हुई, लेकिन इस सीट पर इससे पहले सात बार चुनाव जीतने वाली कांग्रेस को तीसरा पायदान मिला था. जोगी कांग्रेस के फूलसिंह राठिया कांग्रेस की हार का बड़ा कारण बने थे.
कटघोरा में निदर्लीय जीते थे बोधराम
कोरबा की कटघोरा विधानसभा सीट पर भी केवल एक बार निदर्लीय प्रत्याशी को जीत मिल सकी है. हालांकि इस सीट पर बीजेपी-कांग्रेस का चुनावी समीकरण निर्दलीय जरूर बिगाड़ते रहे हैं. कटघोरा विधानसभा से सर्वाधिक बार चुनाव जीतने का रिकार्ड बोधराम कंवर के नाम है. बोधराम ने यहां कुल 6 बार चुनाव जीता है. उन्होंने अपना पहला चुनाव 1972 में लड़ा था. तब वे निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में थे. उनके सामने कांग्रेस के ज्योतिभूषण प्रताप सिंह को बतौर प्रत्याशी उतारा गया था. इस चुनाव में बोधराम को 1079 वोट से जीत मिली थी. वर्ष 2018 के चुनाव में बीजेपी से अलग होकर जोगी कांग्रेस छत्तीसगढ़ से गोविंद सिंह राजपूत ने चुनाव लड़ा था. जिसके कारण इस सीट को बीजेपी को गंवानी पड़ी थी.