पतंजलि के मामले में सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय की सख्त टिप्पणी
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पतंजलि भ्रामक विज्ञापन के मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि अगर लोगों को प्रभावित करने वाले किसी प्रोडक्ट या सर्विस का विज्ञापन भ्रामक पाया जाता है, तो सेलिब्रिटीज और सोशल मीडिया इंफ्लूएंसर्स भी समान रूप से जिम्मेदार हैं। सुप्रीम कोर्ट आईएमए की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इसमें कहा गया है कि पतंजलि ने कोविड वैक्सीनेशन और एलोपैथी के खिलाफ निगेटिव प्रचार किया। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बैंच ने यह सुनवाई की। अदालत ने कहा कि ब्रॉडकास्टर्स को कोई भी विज्ञापन दिखाने से पहले एक सेल्फ डिक्लेरेशन फार्म दाखिल करना होगा, जिसमें कहा जाएगा कि विज्ञापन नियमों का अनुपालन करते हैं। अदालत ने कहा कि टीवी ब्रॉडकास्टर्स ब्रॉडकास्ट सर्विस पोर्टल पर घोषणा अपलोड कर सकते हैं और आदेश दिया कि प्रिंट मीडिया के लिए चार हफ्ते के भीतर एक पोर्टल स्थापित किया जाए। कोर्ट ने भ्रामक विज्ञापनों से जुड़ी 2022 की गाइडलाइन का भी जिक्र किया। इसकी गाइडलाइन 13 में कहा गया है कि किसी व्यक्ति को उस प्रोडक्ट या सर्विस के बारे में पर्याप्त जानकारी या अनुभव होना चाहिए, जिसे वह एंडोर्स कर रहा है। उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह भ्रामक नहीं है।
बैंच ने उपभोक्ता की शिकायत दर्ज करने के लिए प्रोसेस बनाने की जरूरत बताई। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि उसने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में आयुष अधिकारियों को भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ ड्रग एंड कॉस्मेटिक रूल, 1945 के रूल 170 के तहत कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए क्यों कहा। सुनवाई के दौरान कोर्ट का ध्यान केंद्र सरकार की ओर से 2023 में जारी एक पत्र की ओर ले जाया गया। इसमें रूल 170 के कार्यान्वयन पर प्रभावी रूप से रोक लगा दी गई थी। मामले में आईएमए प्रेजिडेंट डा. आरवी अशोकन की टिप्पणियों पर कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई और उन्हें नोटिस जारी करते हुए 14 मई तक जवाब देने को कहा है। दरअसल, 23 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने आईएमए की आलोचना की थी। इसके बाद अशोकन ने एक न्यूज एजेंसी को दिए इंटरव्यू में कोर्ट की टिप्पणी को दुर्भाग्यपूर्ण बताया था। कोर्ट ने कहा कि आप (आईएमए) कहते हैं कि दूसरा पक्ष (पतंजलि आयुर्वेद) गुमराह कर रहा है, आपकी दवा बंद कर रहा है, लेकिन आप क्या कर रहे थे? हम स्पष्ट कर दें, यह अदालत किसी भी तरह की पीठ थपथपाने की उम्मीद नहीं कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने 23 अप्रैल की सुनवाई के दौरान कहा था कि आईएमए को अपने डाक्टरों पर भी विचार करना चाहिए, जो अक्सर मरीजों को महंगी और गैर-जरूरी दवाइयां लिख देते हैं।