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अमेरिका : रामास्वामी ने जॉर्जिया में डेमोक्रेटिक प्राइमरी जीती, सुशीला जयपाल को ओरेगन में मिली हार

अमेरिका : रामास्वामी ने जॉर्जिया में डेमोक्रेटिक प्राइमरी जीती, सुशीला जयपाल को ओरेगन में मिली हार

दक्षिण कोरिया, चीन और जापान के नेता 2019 के बाद पहली बार त्रिपक्षीय बैठक में शामिल होंगे

दमन, धमकियों और संघर्ष के कारण हजारों पत्रकार अपने देश से भागने को हुए मजबूर : संरा विशेषज्ञ

वाशिंगटन
 अमेरिका के जॉर्जिया राज्य सीनेट के चुनाव में उम्मीदवारी हासिल करने की कोशिश कर रहे भारतीय-अमेरिकी अश्विन रामास्वामी ने डेमोक्रेटिक पार्टी की राज्य प्राइमरी जीत ली है।हालांकि, भारतीय-अमेरिकी सांसद प्रमिला जयपाल की बहन सुशीला जयपाल को ओरेगन राज्य से कांग्रेस चुनाव लड़ने के लिए आवश्यक प्राइमरी चुनाव हार गई हैं।

रामास्वामी (23) ने कहा, ‘‘नवंबर में मैं रिपब्लिकन सीनेटर शॉन स्टिल का सामना करूंगा-जिन पर डोनाल्ड ट्रम्प के साथ 2020 में फर्जी मतदाता होने का आरोप लगाया गया था। यह जॉर्जिया की सबसे अनिश्चित नतीजों वाली सीनेट सीट है।’’

रामास्वामी ने सप्ताह के अंत में जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि हासि की है। रामास्वामी के माता-पिता 1990 में तमिलनाडु से अमेरिका आए थे। वह ‘जेनरेशन-जेड’ के पहले भारतीय हैं जिन्होंने राजनीति में यह उपलब्धि हासिल की है। इस श्रेणी में 1997 से 2012 के बीच पैदा हुए लोग आते हैं।

यदि वह निर्वाचित होते हैं तो जॉर्जिया राज्य में अब तक के सबसे कम उम्र के निर्वाचित प्रतिनिधि होंगे और जॉर्जिया में यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले भारतवंशी होंगे।

ऑरेगॉन में 62 वर्षीय सुशीला कांग्रेस के चुनाव में उम्मीदवारी की दावेदारी हार गईं। वह ऑरेगॉन के तीसरे कांग्रेस जिले में राज्य प्रतिनिधि मैक्सिन डेक्सटर से हार गईं। डेक्सटर को 51 फीसदी वोट मिले।

प्रमिला जयपाल ने कहा, “मुझे अपनी असाधारण बहन सुशीला जयपाल पर बहुत गर्व है। हमारे परिवार को ऐसे परिणाम की उम्मीद नहीं थी, लेकिन मुझे पता है कि सुशीला ने सब कुछ दांव पर लगा दिया और जनहित में निहित प्रगतिशील अभियान चलाया।”

दक्षिण कोरिया, चीन और जापान के नेता 2019 के बाद पहली बार त्रिपक्षीय बैठक में शामिल होंगे

सियोल
 दक्षिण कोरिया, चीन और जापान के नेता साल 2019 के बाद अपनी पहली त्रिपक्षीय वार्ता के लिए अगले सप्ताह सियोल में बैठक करेंगे। दक्षिण कोरिया की मीडिया ने यह जानकारी दी।योन्हाप समाचार एजेंसी ने  बताया कि दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक-योल, चीन के प्रधानमंत्री ली क्विंग और जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा के बीच त्रिपक्षीय शिखर सम्मेलन सोमवार को सियोल में होगा।

दक्षिण कोरिया के अन्य मीडिया संस्थानों ने देश के राष्ट्रपति कार्यालय का हवाला देते हुए यही खबर प्रकाशित की। पहली बार साल 2008 में तीनों देशों के शिखर सम्मेलन का आयोजन किया गया था, जिसके बाद से एशिया के इन देशों को हर साल सम्मेलन का आयोजन करना था, लेकिन 2019 से शिखर सम्मेलन नहीं आयोजित किया गया था।

 

दमन, धमकियों और संघर्ष के कारण हजारों पत्रकार अपने देश से भागने को हुए मजबूर : संरा विशेषज्ञ

संयुक्त राष्ट्र
 संयुक्त राष्ट्र (संरा) की एक अन्वेषक ने  कहा कि हाल के वर्षों में हजारों पत्रकारों को राजनीतिक दमन से बचने, अपनी जान बचाने और संघर्ष से बच निकलने के लिए अपने देश से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा लेकिन निर्वासित होने के बाद भी वे शारीरिक रूप से और डिजिटल तथा कानूनी खतरों का सामना करते रहे।

आइरीन खान ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक रिपोर्ट पेश करते हुए कहा कि निर्वासित पत्रकारों की संख्या बढ़ी है क्योंकि कुछ लोकतांत्रिक देशों में स्वतंत्र और आलोचनात्मक मीडिया के लिए जगह कम हो रही है, जहां सत्तावादी प्रवृत्तियां जोर पकड़ रही हैं।

उन्होंने कहा कि आज लोकतंत्र का समर्थन करने वाला और शक्तिशाली नेताओं को जवाबदेह ठहराने वाला निष्पक्ष, स्वतंत्र और विविधतापूर्ण मीडिया दुनिया के एक तिहाई से ज्यादा देशों में नदारद है या उसके काम में रुकावटें हैं। इन एक तिहाई देशों में विश्व की दो-तिहाई से ज्यादा आबादी रहती है।

अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार के संरक्षण और प्रसार पर संयुक्त राष्ट्र की स्वतंत्र अन्वेषक ने कहा कि ज्यादातर पत्रकार और कुछ स्वतंत्र मीडिया संस्थान अपने दश को छोड़ चुके हैं ताकि वे बिना डर या पक्षपात के स्वतंत्र रूप से खबरें दे सकें।

बांग्लादेशी वकील और एमनेस्टी इंटरनेशनल की पूर्व महासचिव खान ने कहा कि निर्वासित पत्रकार अक्सर खुद को अस्थिरता वाली परिस्थितियों में पाते हैं, जहां अक्सर उन्हें तथा उनके परिवारों को अपने ही देशों में धमकियों का सामना करना पड़ता है, वहीं जिस दूसरे देश में शरण लेते हैं वहां बिना किसी कानूनी दर्जे या पर्याप्त समर्थन के काम जारी रखना पड़ता है।

उन्होंने कहा, ”अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के डर और आर्थिक तंगी व विदेशी में रहते हुए अन्य कई चुनौतियों से पार पाने के लिए संघर्ष करते हुए कई पत्रकार अंततः अपना पेशा छोड़ देते हैं।”

खान ने कहा, ”इस प्रकार निर्वासन, आलोचनात्मक आवाज को चुप कराने और प्रेस पर लगाम कसने का एक और तरीका बन गया है।” उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में अफगानिस्तान, बेलारूस, चीन, इथियोपिया, ईरान, म्यांमा, निकारागुआ, रूस, सूडान, सोमालिया, तुर्किये और यूक्रेन से सैकड़ों पत्रकारों को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा। उन्होंने दावा किया कि इसके अलावा बुरुंडी, ग्वाटेमाला, भारत, पाकिस्तान और ताजिकिस्तान सहित कई अन्य देशों से भी कुछ पत्रकारों ने अपना देश छोड़ा है।

 

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