नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सिफारिशों पर सवाल उठाने वाले एक व्यक्ति पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने 25,000 रुपये का जुर्माना लगाया है। दरअसल इस शख्स ने उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए की जाने वाली सिफारिशों के पीछे विस्तृत कारण बताने के लिए कॉलेजियम को निर्देश देने की मांग की थी। न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने कहा कि हाईकोर्ट कॉलेजियम की व्यक्तिपरक संतुष्टि के आधार पर अपील नहीं कर सकता।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, याचिकाकर्ता राकेश कुमार गुप्ता ने कोलेजियम की चयन प्रक्रिया की पारदर्शिता की कमी को चुनौती दी थी। उन्होंने दावा किया कि पारदर्शिता की कमी और सिफारिशों की उच्च अस्वीकृति दर (high rejection rate) ने सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के बीच महत्वपूर्ण संचार विफलता का संकेत दिया है। उन्होंने कहा कि सिफारिशों की उच्च अस्वीकृति दर 2021 में 4.38% से बढ़कर 2023 में लगभग 35.29% हो गई।
गुप्ता की याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा, "किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की पदोन्नति के लिए सिफारिशें संबंधित उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा की जाती हैं। इन सिफारिशों पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा विचार किया जाता है और कॉलेजियम की बैठक के परिणाम माननीय सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर डाले जाते हैं। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने के लिए अपेक्षित योग्यताएं भारत के संविधान के अनुच्छेद 217 के तहत निर्धारित की गई हैं और माननीय सर्वोच्च न्यायालय का कॉलेजियम उच्च न्यायालय के कॉलेजियम की सिफारिशों को स्वीकार करने से पहले कई कारकों पर विचार करता है। यह न्यायालय माननीय सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की व्यक्तिपरक संतुष्टि पर अपील नहीं कर सकता।"
याचिकाकर्ता राकेश कुमार गुप्ता ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम को निम्नलिखित निर्देश देने की मांग की थी-
(A) सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा उच्च न्यायालय कॉलेजियम को उच्च न्यायालय न्यायाधीश की नियुक्ति हेतु भेजी गई सिफारिश के लिए विस्तार से कारण बताना।
(B) भारत के सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए विचार किए जाने वाले मानदंड/योग्यताएं उच्च न्यायालयों के कॉलेजियम को उपलब्ध कराना।
(C) भारत के सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा उच्च न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए लंबित, निपटान की सिफारिशों से संबंधित मासिक डेटा प्रकाशित करना।
गुप्ता ने व्यक्तिगत रूप से पेश होकर तर्क दिया कि वर्ष 2023 में न्यायाधीशों की पदोन्नति के लिए उच्च न्यायालयों द्वारा की गई सिफारिशों को सर्वोच्च न्यायालय कॉलेजियम द्वारा अस्वीकार किए जाने की दर लगभग 35.29% थी, जबकि वर्ष 2021 में यह दर केवल 4.38% थी।
यह तर्क दिया गया कि अस्वीकृति की इतनी अधिक दर अत्यंत परेशान करने वाली है और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के मानदंडों के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के बीच संवादहीनता है। न्यायमूर्ति प्रसाद ने मामले पर विचार किया और कहा कि यह याचिका पूरी तरह से पब्लिसिटी पाने वाली याचिका है। अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि यह याचिका “न्यायिक समय की पूरी बर्बादी” थी और इसे लागत के आदेश के साथ खारिज कर दिया।