नई दिल्ली
नरेंद्र मोदी सरकार के तीसरी बार शपथ ग्रहण लेने के बाद अब भाजपा के नए अध्यक्ष की चर्चा शुरू हो गई है। अध्यक्ष कौन बनेगा इसकी अटकलें तेज हो गई हैं। 2019 लोकसभा चुनाव के बाद जगत प्रकाश नड्डा जनवरी 2020 में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। नड्डा का बतौर बीजेपी अध्यक्ष कार्यकाल जनवरी 2023 में खत्म हो गया। हालांकि, लोकसभा चुनाव को देखते हुए उनके कार्यकाल को जून 2024 तक बढ़ा दिया गया था। चुनाव बाद नड्डा को नरेंद्र मोदी सरकार की कैबिनेट में जगह दी गई है। माना जा रहा है कि बीजेपी के एक व्यक्ति एक पद की नीति के तहत पार्टी जल्द ही अपना नया अध्यक्ष तय करेगी। हाल ही में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयानों के बाद माना जा रहा है कि अध्यक्ष पद के चुनाव में अब संघ की ही चलेगी।
विनोद, अनुराग, ओम और स्मृति के नामों की चर्चा
नड्डा के बाद पहले तो अध्यक्ष पद के लिए मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव और हरियाणा के पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर के नाम भी चर्चा में थे। मगर, इन तीनों को मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने के बाद अब इनकी चर्चाओं पर विराम लग गया है। अब भाजपा अध्यक्ष पद की दौड़ में पार्टी महासचिव विनोद तावड़े, बीएल संतोष, अनुराग ठाकुर, के लक्षमण, ओम माथुर, सुनील बंसल के अलावा स्मृति ईरानी के नाम भी आगे चल रहे हैं।
मोहन भागवत के बयान के बाद बीजेपी अध्यक्ष के चुनाव में संघ की भूमिका की चर्चा तेज हो गई है
इस बार भाजपा अध्यक्ष के चुनाव में संघ की चलेगी
दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर राजीव रंजन गिरि के अनुसार, भाजपा भले ही राजनीतिक पार्टी हो, मगर संगठन में हमेशा संघ की ही चलती है। क्योंकि इसे चलाने वाले लोग ज्यादातर संघ से ही जुड़े होते हैं। मोहन भागवत ने हाल ही में बयान दिया था कि एक सच्चा सेवक मर्यादा का पालन करता है। जिसमें मैंने किया का भाव नहीं होता, अहंकार नहीं होता, केवल वही व्यक्ति सही अर्थों में सेवक कहलाने का अधिकारी होता है। माना जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व को लेकर भागवत यह बयान बेहद मायने रखता है। ऐसे में आगामी वक्त में पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में संघ की भूमिका काफी अहम मानी जा रही है। भाजपा को आरएसएस का राजनीतिक संगठन माना जाता है, ऐसे में संघ अब नहीं चाहेगा कि आगामी विधानसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन खराब हो।
विनोद तावड़े प्रभावशाली महासचिव, संघ से जुड़ाव
महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रह चुके तावड़े को बीएल संतोष के बाद सबसे ज्यादा प्रभावशाली महासचिव माना जाता है। उनके पास दो दशक का संगठन का अनुभव है। वह बचपन से ही संघ से जुड़े हुए हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाले तावड़े के नाम पर इसलिए भी मुहर लग सकती है, क्योंकि इसी साल महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं।
लक्ष्मण का नाम ओबीसी दावेदारों में आगे
नड्डा के बाद भाजपा अध्यक्ष की इस रेस में बीजेपी ओबीसी मोर्चा चीफ के लक्ष्मण का नाम भी चर्चा में हैं। तेलंगाना से आने वाले लक्ष्मण बेहद कर्मठ और जुझारू जाने जाते हैं। दक्षिण के राज्यों में आंध्र प्रदेश के बाद तेलंगाना पर बीजेपी सबसे ज्यादा ध्यान दे रही है।
बंसल की अगुवाई में ओडिशा में बीजेपी का परचम
बीजेपी अध्यक्ष की रेस में सुनील बंसल का नाम भी सामिल है, जो वर्तमान में महासचिव हैं। अमित शाह के चहेते बंसल पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और ओडिशा जैसे तीन राज्यों के इंचार्ज भी हैं। उन्हीं की अगुवाई में बीजेपी ने ओडिशा में शानदार प्रदर्शन किया और नवीन पटनायक सरकार को चारों खाने चित कर दिया।
बीएल संतोष पर्दे के पीछे के रणनीतिकार
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष आरएसएस के बड़े प्रचारक भी रह चुके हैं। बीएल संतोष को बीजेपी में यह पद तब मिला, जब 13 वर्षों से यह पद संभाल रहे रामलाल की विदाई हुई। बीएल संतोष को परदे के पीछे रणनीति बनाने में माहिर माना जाता है।
ओम माथुर गुजरात के प्रभारी, पीएम मोदी के चहेते
राजस्थान से राज्यसभा सदस्य और भैरों सिंह शेखावत के शिष्य ओम माथुर भी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की दौड़ में हैं। पीएम मोदी के चहेते माथुर को चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ अपनी बात कहने के लिए जाना जाता है। ओम माथुर आरएसएस के सक्रिय प्रचारक रहे हैं और पीएम मोदी के गृह राज्य गुजरात के प्रभारी भी रह चुके हैं।
अनुराग ठाकुर को यूथ विंग के अध्यक्ष पद का अनुभव
हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर से सांसद अनुराग ठाकुर का नाम भी भाजपा अध्यक्ष पद के लिए चर्चा में है। हमीरपुर लोकसभा सीट से पांच बार के सांसद अनुराग ठाकुर को इस बार मोदी मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई है। इससे भी उनको पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चाओं ने जोर पकड़ा। अनुराग ठाकुर यूथ बीजेपी के अध्यक्ष के रूप में काम कर चुके हैं। वह बीसीसीआई के संयुक्त सचिव भी रह चुके हैं।
स्मृति ईरानी का नाम भी रेस में, पहली महिला अध्यक्ष संभव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी कई सभाओं में महिला वोटर्स की वकालत करते आ रहे हैं। उन्होंने अपनी लगातार तीन बार की जीत में महिलाओं की भूमिका भी मानी है। वहीं, भाजपा ने संगठन में भी महिला सदस्यों की संख्या बढ़ाने के लिए व्यापक संपर्क अभियान की योजना बनाने जा रही है। वैसे भी महिला आरक्षण अधिनियम लागू हो गया तो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित होंगी। इस बार अध्यक्ष पद के लिए स्मृति ईरानी के नाम की भी चर्चा है। अमेठी की पूर्व सांसद रहीं स्मृति को इस बार कैबिनेट में जगह नहीं मिली है, ऐसे में भाजपा अध्यक्ष के लिए उनका नाम भी आगे चल रहा है। अगर, ऐसा होता है तो वह भाजपा की पहली महिला अध्यक्ष बन सकती हैं।
अध्यक्ष पद से पहले राज्यों में होंगे संगठन चुनाव
भाजपा अपने नए अध्यक्ष के चुनाव से पहले नए सदस्यता अभियान की शुरुआत करेगी और उसके बाद राज्यों में संगठन के चुनाव कराएगी। दरअसल, तय नियमों के मुताबिक अध्यक्ष चुनने से पहले कम से कम 50 फीसदी राज्यों में पार्टी के संगठन का चुनाव होना जरूरी है। ऐसी स्थिति में नड्डा का कार्यकाल या तो बढ़ेगा या फिर किसी नेता को फिलहाल कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है। भाजपा ने हाल ही में अपने संविधान में संशोधन कर पार्टी के शीर्ष निकाय संसदीय बोर्ड को आपातकालीन स्थिति में अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ाने सहित अन्य महत्वपूर्ण निर्णय लेने का अधिकार दिया है।
भाजपा में अध्यक्ष ऐसे चुना जाता है, यह होती है प्रक्रिया
भाजपा के संविधान के अनुसार, राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव पार्टी के एक निर्वाचक मंडल की ओर से किया जाता है। निर्वाचक मंडल में राष्ट्रीय और राज्य परिषदों के सदस्य होते हैं। किसी राज्य के निर्वाचक मंडल के कोई भी 20 सदस्य किसी ऐसे व्यक्ति के लिए प्रस्ताव कर सकते हैं, जो कम से कम 4 कार्यकाल तक सक्रिय सदस्य रह चुके हों। साथ ही इनकी सदस्यता भी कम से कम 15 साल हो चुकी हो। कोई भी संयुक्त प्रस्ताव कम से कम 5 राज्यों से आना चाहिए, जहां राष्ट्रीय परिषद के लिए चुनाव पूरे हो चुके हों।
2027 में यूपी में दमदार वापसी कराना बड़ी चुनौती
आम चुनाव में यूपी, राजस्थान, बिहार, हरियाणा, पश्चिम बंगाल समेत कई राज्यों में औसत प्रदर्शन के कारण भाजपा बहुमत से चूक गई है। पार्टी के नए अध्यक्ष को ऐसे राज्यों में संगठन को चुस्त-दुरुस्त करना होगा। इसके अलावा इसी साल झारखंड, महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगले साल की शुरुआत में ही दिल्ली में भी चुनाव होने हैं। वहीं, 2027 में यूपी में विधानसभा चुनाव होने हैं।
यूपी में आरएसएस की सलाह दरकिनार करना पड़ा भारी
राजीव गिरि कहते हैं कि संघ की भूमिका हमेशा से पार्टी के पीछे बूथ लेवल पर मैनेजमेंट की रही है। मगर, आरएसएस से दूरी की वजह से इस बार के आम चुनाव में पार्टी अपने समर्थक वोटरों को बूथ तक लाने में कई जगह पर विफल रही है। खासकर उत्तर प्रदेश में, जहां बीजेपी को इस बार लोकसभा चुनाव में 33 सीटें ही हासिल कर पाई। मान जा रहा है कि उम्मीदवारों के चयन में भाजपा ने संघ की सलाह को दरकिनार कर दिया था, जिससे उसे यह झटका लगा है।