नई दिल्ली
उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन और रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने एक ऐतिहासिक समझौता किया है। इसके मुताबिक अगर उत्तर कोरिया (North Korea) या रूस (Russia) पर किसी भी देश ने हमला किया तो दोनों मिलकर उसे करारा जवाब देंगे। किम ने नए संबंधों को अलायंस नाम दिया है। दोनों देशों के लिए यह समझौता कितना मायने रखता है कि 25 साल में पहली बार रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने उत्तर कोरिया की यात्रा की है। इससे पहले साल 2000 में पहली बार पुतिन उत्तर कोरिया गए थे। इस बार किम ने अपने खास मेहमान के लिए रेड कॉर्पेट पर स्वागत किया। इसके अलावा, प्योंगयांग में पुतिन के साथ बातचीत के बाद किम ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी बुलाया, जो बड़ी बात है, क्योंकि किम कभी प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं करते। एक्सपर्ट्स के अनुसार, इस तरह के समझौते से तीसरा विश्वयुद्ध भी छिड़ सकता है, क्योंकि ऐसे समझौते बेहद खतरनाक संकेत हैं। आइए- समझते हैं।
किम-पुतिन के समझौते का द्वितीय विश्वयुद्ध से कनेक्शन
किम-पुतिन के 'कॉम्प्रिहेंसिव स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप' एग्रीमेंट का कनेक्शन समझने के लिए हमें 85 साल पहले के अतीत की ओर जाना होगा। 27 सितंबर, 1940 को जर्मनी, जापान और इटली ने एक त्रिपक्षीय समझौता किया था। जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर की अगुवाई में हुए इस समझौते ने द्वितीय विश्वयुद्ध के लिए आग में घी का काम किया। दुनिया का कोई देश ऐसा नहीं बचा जो द्वितीय विश्वयुद्ध में शामिल न हुए हों। जंग में कूदना सबकी मजबूरी बन गई, क्योंकि यह समझौता ही कुछ ऐसा था।
जर्मनी, जापान और इटली को कहा गया एक्सिस पावर्स
दरअसल, जो त्रिपक्षीय समझौता था, वो जर्मनी, इटली और जापान के बीच हुए कई समझौतों की एक बानगी थी। 25 अक्टूबर, 1936 को जर्मनी और इटली ने रोम-बर्लिन एक्सिस नाम से एक समझौता किया। महीने भर बाद ही इसमें जापान भी शामिल हो गया। तीनों को एक्सिस पावर्स कहा गया।
रूस के खिलाफ एकजुट हुए थे एक्सिस पावर्स
दरअसल, जर्मनी, जापान और इटली के बीच यह समझौता एंटी कोमिंटर्न पैक्ट कहा गया। जिसका मतलब सोवियत संघ यानी तब के रूस के खिलाफ एंटी कम्युनिस्ट एग्रीमेंट था। हालांकि, यह समझौता तब टूट गया, जब जर्मनी और सोवियत संघ ने एक-दूसरे के साथ अनाक्रमण समझौता कर लिया। 23 अगस्त, 1939 को दोनों देशों ने यह समझौता कर एक-दूसरे के इलाकों में न घुसने की कसमें खाईं। इसी समझौते ने ही जर्मनी को पोलैंड पर आक्रमण को उकसाया, जिससे दूसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत हुई।
त्रिपक्षीय समझौते में ऐसा क्या था, जिसने भड़काई आग
जर्मनी, जापान और इटली के बीच हुए त्रिपक्षीय समझौते में यह जोर देकर कहा गया था कि तीनों देश एक-दूसरे का राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य सहयोग करेंगे। अगर कोई देश तीनों देशों में से किसी एक पर हमला करता है तो बाकी देश उसे अपने ऊपर हमला मानकर मिलकर कड़ा जवाब देंगे।
अमेरिका भी नहीं बच पाया, जंग में मारनी पड़ी एंट्री
त्रिपक्षीय समझौता दूसरे विश्वयुद्ध में इसलिए मायने रखता है, क्योंकि ज्यादातर देश इसकी वजह से जंग में शामिल हो गए। जापान ने सात दिसंबर 1941 को हवाई के ओआहू द्वीप में अमेरिका के नौसैनिक अड्डे पर्ल हार्बर पर जापान ने हमला कर दिया। अगले ही दिन यानी 8 दिसंबर को अमेरिका ने जापान के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया। स्वाभाविक था कि यह जंग सिर्फ जापान के खिलाफ ही नहीं थी, त्रिपक्षीय समझौते ने जर्मनी, इटली के खिलाफ भी थी।
रूस-उत्तर कोरिया के गठजोड़ से बढ़ेगी अमेरिका की टेंशन
उत्तर कोरिया और रूस दोनों ही अमेरिका के परंपरागत दुश्मन हैं। इस दुश्मनी के कभी खत्म होने के आसार भी नहीं हैं। जिस तरह का माहौल इस वक्त पूरी दुनिया में चल रहा है और नए-नए गठजोड़ बन रहे हैं, उसमें ये मुलाकात बड़े खतरे का संकेत है। दोनों देशों के बीच जिस तरह का समझौता हुआ है, उससे तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत हो सकती है।
तीसरे विश्वयुद्ध का क्या है गणित, एक्सपर्ट से समझिए
दक्षिण चीन सागर में चीन का जहां ताइवान, फिलीपींस और वियतनाम जैसे देशों के साथ विवाद चल रहा है। वहीं, प्रशांत क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया, भारत जैसे देश भी कुछ समझौतों के रूप में एकसाथ आ चुके हैं। अमेरिका का झगड़ा उत्तर कोरिया और रूस के साथ चल ही रहा है। अमेरिका के एक सहयोगी दक्षिण कोरिया की उत्तर कोरिया के साथ बैलून जंग चल रही है। ऐसे जटिल समीकरण के बीच अगर किसी भी देश में जंग की शुरुआत होती है तो तीसरा विश्वयुद्ध भड़क सकता है।
अमेरिका क्यों है परेशान, किम को क्या फायदा
रूस और उत्तर कोरिया के बीच हुए इस समझौते को लेकर अमेरिका को इस बात की चिंता सबसे ज्यादा सता रही है कि कहीं रूस अपनी सैन्य तकनीक उत्तर कोरिया को न देने लग जाए। वहीं, उत्तर कोरिया का करीब आधा तेल रूस से आता है, मगर उसका करीब 80 फीसदी कारोबार चीन के साथ होता है। पुतिन को यूक्रेन में जंग जारी रखने के लिए बड़ी मात्रा में गोला-बारूद चाहिए, जो उसे उत्तर कोरिया से हासिल हो सकता है। वहीं, उत्तर कोरिया को सैन्य तकनीक और बड़ी मात्रा में पैसे हासिल हो सकते हैं।