नई दिल्ली
18वीं लोकसभा का अध्यक्ष पद भाजपा अपने पास रखेगी। इस मुद्दे पर राजग में सहमति बन गई है। इस बार उपाध्यक्ष पद पर भी नियुक्ति किए जाने की संभावना है। यह पद भाजपा अपने सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी को दे सकती है। जदयू के पास पहले से ही राज्यसभा में उपसभापति का पद है। भाजपा ने लोकसभा में प्रोटेम स्पीकर पद पर भर्तृहरि महताब की नियुक्ति कर साफ कर दिया है कि वह विपक्ष के दबाव में नहीं आएगी।
इस बार लोकसभा में भाजपा और राजग की ताकत कम होने और विपक्षी दलों की ताकत बढ़ने के बाद भी सत्ता पक्ष के तेवर में कोई कमी नहीं आई है। सरकार ने संकेत दिए हैं कि लोकसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों पद सत्ता पक्ष के पास ही रहेंगे।
सत्ता पक्ष में सबसे बड़ा दल होने के नाते भाजपा अध्यक्ष पद अपने पास रख सकती है, जबकि उपाध्यक्ष पर सहयोगी तेलुगु देशम पार्टी को दिए जाने की संभावना है। हालांकि विपक्ष परंपरानुसार उपाध्यक्ष पद के लिए दावा कर रहा है और ऐसा न होने पर अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोनों पदों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर निर्विरोध निर्वाचन में अड़ंगा डाल सकती है।
प्रोटेम स्पीकर को लेकर हुई टकराव की शुरुआत
सत्ता और विपक्ष में टकराव की शुरुआत प्रोटेम स्पीकर को लेकर हो चुकी है। कांग्रेस की तरफ से वरिष्ठ सांसद के सुरेश का नाम आगे बढ़ाया गया था। आठ बार के सांसद सुरेश का वरिष्ठता के लिहाज से दावा भी बनता था, लेकिन सरकार ने सात बार के सांसद भाजपा के भर्तृहरि महताब को इसके लिए चुना क्योंकि वह सात बार लगातार जीते हैं, जबकि सुरेश बीच में दो बार हारे थे।
सरकार ने इसे नियमों के अनुसार उचित ठहराया है, लेकिन राजनीतिक रूप से माना जा रहा है कि सत्ता पक्ष खासकर भाजपा ने 18वीं लोकसभा की शुरुआत में ही साफ कर दिया है कि वह विपक्ष के सामने किसी तरह का समझौतावादी रुख नहीं अपनाएगा। भले ही उसकी ताकत कुछ कम हुई हो, लेकिन पिछली दो सरकारों की तरह वह इस बार भी उन्हीं तेवरों और सक्रियता के साथ काम करेगी।
विपक्ष के तेवर भी कम नहीं
इस बार विपक्ष के तेवर भी कम नहीं है। लोकसभा में कांग्रेस के सांसदों की संख्या पिछली बार से लगभग दोगुनी हुई है। सरकार द्वारा उसे उपाध्यक्ष न दिए जाने की स्थिति में विपक्ष अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों पदों पर उम्मीदवार उतार सकता है। ऐसे में नई लोकसभा की शुरुआत से ही सरकार और विपक्ष सर्वानुमति की जगह टकराव और बहुमत की ताकत की तरफ बढ़ेंगे। इससे सदन में कई मुद्दों पर टकराव बढ़ने की आशंका है। खासकर संविधान संशोधन जैसे विधेयकों पर जहां दो तिहाई सांसदों का समर्थन जरूरी होता है। ऐसे में कई मुद्दों पर सरकार को विपक्ष के सहयोग के बिना अपना कामकाज निपटाना मुश्किल हो सकता है और कई बार पीछे भी हटाना पड़ सकता है।