नई दिल्ली
पूर्वी असम के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एवं टाइगर रिजर्व में एक अकेली मादा घड़ियाल देखी गयी जो इस क्षेत्र में घडियालों की संख्या को बढ़ाने में बहुत अहम भूमिका निभा सकती है। मादा घड़ियाल का बह्मपुत्र नदी के किनारे पाये जाने से सभी आश्चर्यचकित है। वर्ष 1950 के दशक से इस नदी से घड़ियाल विलुप्त हो गये थे।
सर्वेक्षण में मादा घड़ियाल अपनी प्रजाति की एकमात्र ऐसी घड़ियाल पाई गई जो “रेतीले तट” और “4.5 मीटर गहरे जल वाले रेतीले टीले” के बीच रहती है। इस मादा घड़ियाल को पहली बार 2021 में काजीरंगा के बिश्वनाथ वन्यजीव प्रभाग में देखा गया था। इस घड़ियाल की लंबाई 2.55 मीटर है। इसे जनवरी में ब्रह्मपुत्र पर जलीय सरीसृपों के 10 दिवसीय सर्वेक्षण के दौरान चुनी गई तीन प्राथमिकता वाले ठिकानों में से एक में 500 मीटर की दूरी पर नदी के तट पर बालू पर दो बार धूप सेंकते हुये देखा गया था।
जानकारों का मानना है कि घड़ियालों की आबादी बढ़ाने की स्वीकृति मिलने पर उत्तर प्रदेश के कुकरैल घड़ियाल प्रजनन केंद्र से घड़ियाल यहां लाये जा सकते है। इसका उद्देश्य घड़ियालों को उनके ऐतिहासिक क्षेत्र में वापस लाना और इस गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति के अस्तित्व को बचाना है।
वन्यजीव अधिकारियों और विशेषज्ञों को अभी यह पता नहीं चला कि काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व के भीतर ब्रह्मपुत्र नदी के एक हिस्से में यह घड़ियाल कैसे आ गया, लेकिन उन्हें यकीन है कि यह सरीसृप नदी को घड़ियालों से फिर से आबाद करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। अपनी लम्बी थूथन के कारण अन्य मगरमच्छों से बिल्कुल भिन्न इस घड़ियाल ( गेवियलिस गैंगेटिकस ) के बारे में माना जाता है कि यह 1950 के दशक में ब्रह्मपुत्र नदी से विलुप्त हो गये थे, हालांकि 1990 के दशक में इसे देखने के दावे भी किये गये थे।
सरीसृपों में विशेषज्ञता रखने वाली गैर सरकारी संस्था टर्टल सर्वाइवल अलायंस फाउंडेशन इंडिया (टीएसएएफआई) और असम वन विभाग की टीमों ने पश्चिम में कलियाभोमोरा पुल से लेकर बिश्वनाथ डिवीजन के पूर्वी छोर से आगे माजुली के कमलाबाड़ी घाट तक 160 किलोमीटर के क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र का सर्वेक्षण किया।
टीएसएएफआई की परियोजना निदेशक सुष्मिता कार ने कहा, “हम इस उपयुक्त आवास में घड़ियालों को पुनः स्थापित करने के लिए प्रस्ताव करते हैं।” काजीरंगा की निदेशक सोनाली घोष ने घड़ियाल प्रजनन कार्यक्रम के लिए क्षेत्र की आदर्श स्थितियों पर प्रकाश डाला, जिसमें न्यूनतम मानवजनित व्यवधान और प्रचुर मछली आबादी का हवाला दिया गया।