भोपाल
अक्सर अभिभावक अपने बच्चों को विदेश में मेडिकल सहित उच्च शिक्षा के लिए भेजने से पहले कंसल्टेंसी की मदद लेते हैं, लेकिन जब वही कंसल्टेंसी ठगती है तो बच्चे का करियर भी बर्बाद होता है। ऐसा ही कंसल्टेंसी के खिलाफ एक मामले में राज्य उपभोक्ता आयोग ने निर्णय सुनाया है। राज्य उपभोक्ता आयोग ने पहली बार किसी विदेशी यूनिवर्सिटी बंद होने से होने वाले नुकसान पर पीड़ित को बड़ा मुआवजा देने का आदेश दिया है। आयोग ने अमेरिका की यूनिवर्सिटी में प्रवेश दिलाने वाली सलाहकारी फर्म और बीमा कंपनी रिलायगेयर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी को 20 लाख रुपये से अधिक की राशि अदा करने का आदेश दिया है। पीड़ित ने बीमा कंपनी की ओर से नुकसानी का दावा अस्वीकार करने के बाद आयोग का दरवाजा खटखटाया था।
दरअसल, इंदौर के सांवेर रोड निवासी अशोक कुमार कुशवाहा ने 2017 में अपनी बेटी शोभना कुशवाहा का अमेरिका के संस्थान में एमबीबीएस में प्रवेश दिलाना चाहा। इसके लिए उन्होंने गोल्डन इंडिया एजुकेशन सर्विस नाम की कंसल्टेंसी फर्म से संपर्क किया। कंसल्टेंसी के संचालक सुभाष अग्रवाल ने उन्हें बारबाडोस की वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में प्रवेश का सुझाव दिया।अग्रवाल ने कहा कि वे भी अपनी बेटी का प्रवेश उसी यूनिवर्सिटी में करा रहे हैं। उन्होंने सभी औपचारिक मान्यता की शर्तें पूरी होने का भी भरोसा दिलाया। उनकी सलाह पर अशोक कुमार कुशवाहा ने अपनी बेटी का प्रवेश वहां करा दिया। नवंबर 2017 में उनकी बेटी अमेरिका के लिए रवाना हुई। जाने से पहले कंसल्टेंसी फर्म ने ही रिलायगेयर हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी से उसका बीमा कराया। यह 50 हजार अमेरिकन डालर तक का रिस्क कवर करता था। अमेरिका जाने के आठ महीनों के बाद ही वह यूनिवर्सिटी बंद हो गई। ऐसे में छात्रा को वापस आना पड़ा।
विवि को मान्यता प्राप्त नहीं थी
परिवादी ने बताया कि एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए साढ़े 28 लाख रुपये का खर्च कंसल्टेंसी द्वारा बताया गया।कंसल्टेंसी ने बताया था कि यह विश्वविद्यालय मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया से मान्यता प्राप्त है। साथ ही यह विश्वविद्यालय एजुकेशन कमिश्नरी फारेन एजुकेशन इन मेडिकल एंड अदर हेल्थ प्राेफेशनल भी कंपलीट है। जिस पर विश्वास करते हुए उन्होंने अपनी बेटी का एडमिशन करा दिया।साथ ही इसमें करीब 18 लाख रुपये भी जमा कर दिए।
कंसल्टेंसी ने भी बीमा कंपनी को जिम्मेदार बताया
आयोग में सुनवाई के दौरान कंसल्टेंसी ने बताया कि इस प्रवेश प्रक्रिया में उसको एक लाख रुपये शुल्क के तौर पर मिलने थे, लेकिन जो राशि उसे मिली थी उसका बड़ा हिस्सा परिवादी की बेटी पर ही खर्च हुआ है।इसकी वजह से उसका एक लाख रुपये तो नहीं मिला, उल्टा उसका 51 हजार रुपया अधिक खर्च हो गया।कंसल्टेंसी ने भुगतान के लिए बीमा कंपनी को ही जिम्मेदार बताया। हालांकि आयोग ने कंसल्टेंसी फर्म को भी नुकसान का जिम्मेदारी मानते हुए एक लाख रुपये देने का आदेश दिया है।
आयोग ने बीमा कंपनी को याद दिलाया कानून
सुनवाई के दौरान आयोग ने बीमा कंपनी को सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों के हवाले से कानून याद दिलाया। आयोग ने कहा कि बीमा कंपनी को पालिसी के नियम-शर्तों को साफ शब्दों में बताया जाना चाहिए।वहीं जिस कंडिका में यात्रा जोखिम का हवाला देकर कंपनी बीमा दावे का भुगतान नकार रही है वह भी सही नहीं है। यह बीमा दावा विश्वविद्यालय के बंद होने से हुए नुकसान की भरपाई के लिए है। पालिसी के फायदों में इसका जिक्र है कि पढ़ाई में व्यवधान और यूनिवर्सिटी के दिवालिया हो जाने की सूरत में भरपाई होगी।ऐसे में बीमा कंपनी को 18 लाख 65 हजार 700 रुपये परिवादी को देना होगा। मोना पालीवाल, उपभोक्ता के मामले की अधिवक्ता ने कहा इस तरह का यह पहला मामला आया है। मामले में कंसल्टेंसी की गलती तो ही, लेकिन बीमा कंपनी ने बीमा राशि देने से इंकार किया था। इस कारण दोनों को दोषी ठहराते हुए आयोग ने हर्जाना लगाया।