नई दिल्ली
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मॉरीशस की अपनी दो दिवसीय यात्रा के दौरान हिंद महासागर में चागोस द्वीप समूह के मुद्दे पर द्वीपीय देश मॉरीशस को भारत के समर्थन की पुष्टि की है। चागोस द्वीप समूह 50 से अधिक वर्षों से लंदन और पोर्ट लुइस के बीच विवाद का एक मुद्दा बना हुआ है। जयशंकर ने मॉरीशस की राजधानी पोर्ट लुईस में कहा कि भारत मॉरीशस की प्रगति और समृद्धि की दिशा में “निरंतर और सतत” समर्थन की पुष्टि करता है। उन्होंने कहा कि चागोस के मुद्दे पर भारत राष्ट्रों की अखंडता और उपनिवेशवाद के उम्मूलन के संदर्भ में लगातार मॉरीशस को समर्थन जारी रखेगा। जयशंकर विशेष द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने के मकसद से मॉरीशस के नेतृत्व के साथ “सार्थक बातचीत” के लिए दो दिवसीय पोर्ट लुईस की यात्रा पर हैं। इस दौरान उन्होंने हिंद महासागर क्षेत्र के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के वास्ते देश के नेतृत्व के साथ व्यापक वार्ता की। उन्होंने ब्रिटेन द्वारा मॉरीशस के क्षेत्र चागोस द्वीपसमूह पर कब्जा करने के मुद्दे पर भारत के समर्थन की पुष्टि की। इस कदम की मॉरीशस ने सराहना की है।
जयशंकर ने मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार जगन्नाथ के साथ एक कार्यक्रम में कहा, "प्रधानमंत्री जी, जैसा कि हम अपने गहरे और स्थायी संबंधों को देखते हैं, मैं आज आपको फिर से आश्वस्त करना चाहूंगा कि चागोस के मुद्दे पर भारत उपनिवेशवाद के उन्मूलन और राष्ट्रों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के लिए अपने मुख्य रुख के अनुरूप मॉरीशस को अपना निरंतर समर्थन जारी रखेगा।"
क्या है चागोस द्वीप समूह और विवाद
हिन्द महासागर में मालदीव से लगभग 500 किलोमीटर दक्षिण में 60 से अधिक द्वीपों का एक समूह है, जिसे चागोस द्वीप समूह कहा जाता है। ये 60 छोटे-छोटे द्वीप मिलकर सात एटॉल का एक समूह बनाता है, जो करीब 2.5 लाख वर्ग मील क्षेत्र में फैला हुआ है। यहां छोटी-छोटी समुद्री पहाड़ियां भी हैं जो भारत के लक्षद्वीप तक फैली समुद्री पर्वत श्रृंखला का दक्षिणी छोर है। मॉरीशस इस द्वीप समूह को अपना हिस्सा मानता है और उस पर अपनी संप्रभुता का दावा करता है, जबकि इस पर कब्जा ब्रिटेन का है। ब्रिटेन ने 1967 में यहां से सभी नागरिकों को जबरन हटाकर इस द्वीप समूह को संयुक्त राज्य अमेरिका को सैन्य अड्डा बनाने के लिए किराए पर दे दिया था, तब से विवाद जारी है। डिएगो गारसिया इस द्वीप समूह का अहम द्वीप है, जिस पर अमेरिकी सैनिक का बेस स्टेशन है।
अमेरिका का क्या हित लाभ?
ब्रिटेन ने 12 मार्च 1968 को मॉरीशस को आजाद कर दिया था लेकिन चागोस द्वीप समूह को मॉरीशस को वापस करने से इनकार कर दिया था। तब ब्रिटेन ने मॉरीशस को आजाद करने से पहले ही 1967 में चागोस द्वीप समूह को अमेरिका को किराए पर दे दिया था और दावा किया था कि यह द्वीप समूह हिंद महासागर में रक्षा उद्देश्यों के लिए काफी अहम है। उस वक्त ब्रिटेन ने मॉरीशस को धमकी दी थी कि अगर उसने चागोस पर उसकी बात नहीं मानी तो आजादी मिलना मुश्किल है। कहा जाता है कि मॉरीशस के तत्कालीन प्रधानमंत्री शिवसागर रामगुलाम ने मजबूरन तब उनकी मांग मान ली थी।
बाद में 1980 में रामगुलाम ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में यह मुद्दा उठाया और चागोस द्वीप समूह को मॉरीशस को वापस करने की मांग की। उसके बाद से ही दोनों देशों के बीच यह विवाद जारी है। हालांकि, 2015 में मॉरीशस ने नीदरलैंड के हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय स्थायी मध्यस्थता न्यायालय में ब्रिटेन के खिलाफ मामलों को उठाया। इस मामले में, स्थायी मध्यस्थता न्यायालय ने कहा कि लंदन मॉरीशस के अधिकारों को उचित सम्मान देने में विफल रहा। न्यायालय ने चागोस द्वीप समूह के आसपास पानी में जानबूझकर समुद्री संरक्षित क्षेत्र बनाने के लिए भी ब्रिटेन को दोषी ठहराया। बाद में 2019 में मॉरीशस इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस पहुंचा। ICJ ने ब्रिटेन को चागोस द्वीप समूह मॉरीशस को लौटाने का निर्देश दिया लेकिन ब्रिटने ने उस आदेश को एडवायजरी कहकर मानने से इनकार कर दिया।
क्या कह रहा ब्रिटेन?
ब्रिटेन चागोस द्वीप समूह पर अपने कब्जे का लगातार बचाव करता रहा है और यह तर्क देता रहा है कि मॉरीशस की इस द्वीपसमूह पर कभी भी संप्रभुता नहीं रही है और हम उसके दावे को मान्यता नहीं देते हैं। इस साल जनवरी में ही ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड कैमरन ने चागोस द्वीप समूह के पूर्व निवासियों के पुनर्वास की संभावना को खारिज कर दिया था। उन्होंने सुझाव दिया कि 1960 और 1970 के दशक में ब्रिटिश सरकार द्वारा जबरन विस्थापित किए गए चागोसवासियों के लिए अब द्वीपों पर वापस लौटना "संभव नहीं" है। अब ब्रिटेन में नई सरकार आई है। ऐसे में यह देखना बाकी है कि कीर स्टारमर के नेतृत्व वाली नव-निर्वाचित लेबर पार्टी द्वीपों पर अपना रुख बदलती है या पुराने रुख पर कायम रहती है।