चीन के पास हैकरों (Chinese hackers) की लंबी-चौड़ी फौज है, जो दुश्मन देशों की सुरक्षा में सेंध लगाने में जुटी है. भारत भी उनका बड़ा टारगेट है.
भारत-चीन के बीच पूर्वी लद्दाख (India-China tension in Ladakh) में तनाव को लगभग 6 महीने होने जा रहे हैं. दोनों ओर बड़ी संख्या में सैनिक तैनात हैं. चीन भारत का मनोबल गिराने की सारी कोशिशें कर रहा है. यहां तक कि भारतीय सेना को कमजोर करने के लिए उसने मनोवैज्ञानिक युद्ध भी छेड़ा, जो बेअसर रहा. आशंका है कि चीन के हैकर आर्मी की खुफिया जानकारी चुराने की कोशिश कर सकते हैं. इसे देखते हुए सेना ने अपने लिए नया मैसेजिंग एप बनाया है. इस एप को साई (SAI) नाम दिया गया.
क्या है ये एप
अक्टूबर अंत में भारतीय थल सेना ने साई नाम से मैसेजिंग एपलाने का एलान किया. इस एप्लिकेशन का पूरा नाम Secure Application for Internet है, जो सैनिकों की आपसी बाततीत को पूरी तरह से गुप्त रखेगा. इससे ऑडियो और वीडियो कॉल , मैसेज का आदान-प्रदान भी सुरक्षित ढंग से हो सकेगा और लीक होने या हैक होने का कोई डर नहीं होगा.
एप पूरी तरह से मिलिट्री संचार के लिए तैयार हुआ. खासतौर पर इसे चीन और पाकिस्तान से तनाव के बीच लद्दाख और कश्मीर एलओसी पर तैनात सैनिकों के लिए बनाया गया. लॉन्च के तहत भारतीय सेना ने एक बयान में कहा कि इसे आत्मनिर्भर भारत के तहत बनाया गया है. ये ऊपर तौर पर वॉट्सएप, टेलीग्राम या संवाद जैसा है और एक से दूसरे छोर तक संदेश भेजने (भेजने और पाने की प्रक्रिया) के लिए इंक्रिप्शन मैसेजिंग प्रोटोकॉल का उपयोग करता है.
सेना को नए एप की जरूरत क्यों पड़ी?
दरअसल काफी समय से पाकिस्तान और चीन भारत की सुरक्षा से जुड़ी जानकारियों को हैक करने की कोशिश कर रहे थे. इस बारे में लगातार खबरें आती रहीं. यहां तक कि कई बार वॉट्सएप के जरिए भारतीय सैनिकों को हनीट्रैप का भी शिकार होना पड़ा. इसे ही देखते हुए कुछ ही महीने पहले इंडियन आर्मी ने फेसबुक और इंस्टा समेत पूरे 89 मोबाइल एप पर बैन लगा दिया.
पहले से ही हैं कई आदेश
इन एप्स में फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्रू-कॉलर और पबजी भी शामिल हैं, जिनका लोग काफी इस्तेमाल करते हैं. वहीं व्हॉट्सएप, ट्विटर और यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया पर छूट दी गई है लेकिन इसके उपयोग में भी ध्यान रखना होगा कि किसी भी तरह की फोटो या ऐसी जानकारी न साझा हो, जो संवेदनशील हो. साथ ही ये भी कहा गया कि अगर किसी सैनिक के मोबाइल पर तय तारीख के बाद भी जारी लिस्ट से कोई एप दिखता है तो उसपर अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है.
साल 2019 में WhatsApp के मामले में खास ताकीद देते हुए कहा गया कि वे किसी भी ऐसे ग्रुप से न जुड़ें, जिसके हरेक सदस्य को वो पर्सनली न जानते हों. एडवाइजरी में सेना का साफ कहना था कि का कहना है कि ज्यादा आकर्षक नजर आने वाली चीजें ‘हनीट्रैप’ हो सकती हैं. यानी सीक्रेट जानकारी निकलवाने के लिए दुश्मन देश के लोग किसी फेक प्रोफाइल से जान-पहचान बढ़ा सकते हैं. ऐसे कई मामले भी आए.
कैसे फंसाया जाता है
सेना के लोगों पर पूरा होमवर्क करके फिर सोशल मीडिया पर फेक प्रोफाइल बनाई जाती है. धीरे-धीरे संपर्क शुरू किया जाता है. जानकारी हासिल करने के क्रम में करीब आने के लिए नंबरों का लेनदेन होता है. whatsapp से चैटिंग होती है. निजी तस्वीरों और बातों का आदान-प्रदान भी होता है. इसी दौरान जब सेना के अधिकारी को यकीन हो जाता है, तब बात ही बात में उससे जानकारी लेने की कोशिश शुरू की जाती है. ये देश की सुरक्षा के लिहाज से काफी खतरनाक हो सकता है.
किन चीजों का और कैसे इस्तेमाल मना है
जवानों और अफसरों को निर्देश दिया गया है कि वे फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और किसी भी सोशल प्लेटफॉर्म पर यूनिफॉर्म, मिलिट्री उपकरणों, ऐसे बैकग्राउंड जिनसे उनके सेना में होने का पता चलता हो, ऐसी चीजें पोस्ट न करें. ये सेना के लिए एक लंबी सूची का हिस्सा है, जो खासतौर पर हनी ट्रैप से बचने के लिए बनाई गई हैं. इनके अलावा अपनी लोकेशन न बताना, अपनी प्रैक्टिस की तस्वीरें या जानकारी न देना, अजनबियों की फ्रेंड रिकवेस्ट न लेना, अपने पर्सनल कंप्यूटर, टैब या फोन पर सेना की कोई भी जानकारी न रखना जैसी बातें शामिल हैं.
चीन में लगभग एक लाख हैकर
चीन से डर बेवजह नहीं. बता दें कि वहां हैकरों की फौज है, जिसमें लगभग 1 लाख लोग काम करते हैं. साल 2019 में यूएस डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस (DoD) ने चीन के साइबर अटैकर्स की ताकत का अंदाजा लगाने की कोशिश की. इस दौरान वो खुद हैरान रह गया क्योंकि चीन में सेना के साथ-साथ साइबर आर्मी को भी बराबर महत्व मिलता है. इसमें एक से बढ़कर एक हैकर्स भरे हुए हैं, जिनका काम बंटा है.
इस तरह होता है वहां काम
एक विभाग जासूसी करके खुफिया जानकारियां निकालता है तो कोई ग्रुप सॉफ्टवेयर में गड़बड़ियां पैदा करता है. चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) का मानना है कि सेना पर खर्च की बजाए दुश्मन देश को कमजोर करने के लिए साइबर वॉर छेड़ना कम खर्चीला है. सेना और संस्थानों के साथ चीन में गैर सरकारी संस्थाएं भी हैं जो हैकिंग में ट्रेंड हैं ताकि देश की सुरक्षा की जा सके.