कम रिस्क लेने की क्षमता वाले निवेशक छोटे फाइनेंस बैंक, प्राइवेट के बैंक और छोटे बैंकों की एफडी योजनाओं को विकल्प चुन सकते हैं.
मौजूदा आर्थिक हालातों को देखकर यह अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि आने वाले वक्त में ब्याज दरें निचले स्तर पर ही रहेंगी. ब्याज दरों के नीचे रहने से सबसे ज्यादा समस्या उन निवेशकों को हो रही है, जिन्होंने फिक्स्ड डिपोजिट में अपना पैसा जमा रखा है. मई के बाद से अब तक रेपो रेट गिरते हुए 6.25 फीसदी पर आ गया है और इस वजह से तमाम लिक्विड फंड, शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म निवेश में भी ब्याज दरें बेहद कम हो गई हैं. बैंकों के एफडी दर पांच से छह फीसदी के आसपास हैं .
निचले टैक्स स्लैब वाले तलाशें बेहतर विकल्प
लेकिन ट्रेडिशनल फिक्स्ड इनकम योजनाओं को छोड़ना भी बिल्कुल ठीक नहीं है . निचले टैक्स स्लैब में आने वाले निवेशकों को एफडी योजनाओं में बेहतर ब्याज देने वाला विकल्प तलाशना चाहिए. कम रिस्क लेने की क्षमता वाले निवेशक छोटे फाइनेंस बैंक, प्राइवेट के बैंक और छोटे बैंकों की एफडी योजनाओं को विकल्प चुन सकते हैं, जहां बड़े प्राइवेट और सरकारी बैंकों की तुलना में एफडी पर तुलनात्मक तौर ज्यादा ब्याज दिया जा रहा है. फिलहाल निवेशकों को एक से दो वर्ष की छोटी अवधि की एफडी स्कीम को चुनना चाहिए. का चयन करना चाहिए. मौजूदा निचली दरों पर लंबे समय तक निवेश के चक्कर में नहीं फंसकर निवेशक हालात सुधरने पर अधिक रिटर्न देने वाली योजनाओं में आसानी से पैसा लगा सकते हैं.
अल्ट्रा शॉर्ट टर्म बॉन्ड में कर सकते हैं निवेश
निवेशक किसी बड़ी म्युचुअल फंड कंपनी के अल्ट्रा-शॉर्ट-टर्म बॉन्ड फंड में निवेश कर सकते हैं. ये फंड तीन से छह महीने में मैच्योर होने वाली सिक्योरिटीज में निवेश करते हैं. एक वर्ष तक रकम लगाने वाले लोग लो-ड्यूरेशन फंडों और मनी-मार्केट फंडों में निवेश कर सकते हैं. संभावित रिटर्न के लिए पिछले आंकड़ों पर नजर दौड़ाने के बजाय पोर्टफोलियो के यील्ड-टू-मैच्योरिटी (वाईटीएम) पर गौर करें. एक से तीन वर्षों तक निवेश की योजना वाले निवेशक शॉर्ट-ड्यूरेशन बॉन्ड फंड में निवेश कर सकते हैं. अल्ट्रा-शॉर्ट और लो-ड्यूरेशन फंड अमूमन बैंक एफडी के मुकाबले अधिक रिटर्न देते हैं.