इंदौर
मध्यप्रदेश के इंदौर से बड़ी खबर है। हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने डीजीपी (डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस ) को बड़ा आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि सभी पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरे हमेशा चालू हालत में मिलने चाहिए। इससे थानों में आम लोगों से होने वाले अत्याचारों में कमी आएगी। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति के साथ थाने में खराब व्यवहार होता है तो कैमरे प्रमाण दे सकते हैं।
मांगे जाने पर नहीं मिलते फुटेज
कोर्ट ने कहा कि किसी घटना में थाने के फुटेज मांगे जाने पर नहीं मिलते हैं, इसे थाना प्रभारी या अन्य प्रभारी अधिकारी की लापरवाही मानी जाएगी। कोर्ट ने डीजीपी को इसके पालना के निर्देश दिए हैं।
जानें क्या है पूरा मामला
बता दें कि निर्मल नाम के युवक के खिलाफ पुलिस ने एनडीपीएस एक्ट के तहत केस दर्ज किया था। निर्मल ने जमानत के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। युवक ने याचिका में थाने में प्रताड़ित करने सहित कई गंभीर आरोप पुलिस पर लगाए थे। सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने युवक को जमानत दे दी थी, लेकिन अत्याचार के संबंध में जो आरोप लगाए थे उस पर अलग से सुनवाई की थी।
कोर्ट ने बॉडी कैमरा देने की बात कही थी
थाने में रिकाॅर्ड भी उपलब्ध नहीं था। पुलिस रेडियो के वरिष्ठ अधीक्षक ने कोर्ट में पुलिस थानों में CCTV को लेकर जारी की गई एसओपी के बारे में बताया था। कोर्ट ने पूछा कि थानों में कैमरे काम कर रहे हैं या नहीं, इसकी जिम्मेदारी सुनिश्चित करने वाला कौन व्यक्ति है? हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि प्रदेश के प्रमुख शहरों के मुख्य पुलिस थानों में पुलिसकर्मियों को बॉडी कैमरा दिए जाना चाहिए। इस दिशा में सरकार को सोचना चाहिए।
छह दिन पहले भी कोर्ट ने जताई थी नाराजगी
इंदौर हाईकोर्ट ने 6 दिन पहले रतलाम में हुई डकैती और हत्या के मामले की जांच में हो रही लापरवाही को लेकर नाराजगी जाहिर की थी। कोर्ट ने डीजीपी को आदेश दिए थे कि सभी गंभीर अपराधों की जांच एसआईटी द्वारा ही होना चाहिए। हर जिले में यह एसआईटी गठित हो। इसमें कम से दो सदस्य हो। साथ ही वरिष्ठ मॉनीटरिंग करें। सीनियर लेवल के आईपीएस इसे लीड करेंगे।
छठी बार में जमानत को मंजूरी
रतलाम में 2020 में हुई डकैती और हत्या के केस में आरोपी सुमित सिंह की जमानत का मामला सामने आया था। इसे लेकर बार-बार पुलिस से जानकारी मांगी गई लेकिन सबूतों की कमी और कार्रवाई में देरी की वजह से छठी बार में उसकी जमानत मंजूर हो गई थी। हाईकोर्ट ने केस में पाया कि जांच अधिकारी और फारेंसिंक टीम की भारी लापरवाही रही।