India-China Standoff: अमेरिका की एक ख़ुफ़िया रिपोर्ट लीक हुई है जिसमें ये सामने आया है कि चीन से निपटने के लिए ट्रंप प्रशासन भारत को सैन्य सहयोग देने पर विचार कर रहा है. इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद चीन ने कड़ी आपत्ति जाहिर की है.
अमेरिका (US) की एक ख़ुफ़िया रिपोर्ट लीक हुई है जिसमें सामने आया है कि अमेरिका अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति ( US strategy in Asia) में भारत (India) को आगे बढ़ाना चाहता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन (China) से मुक़ाबला करने के लिए भारत के साथ सैन्य, ख़ुफ़िया और राजनयिक समर्थन बढ़ाने चाहिए. हालांकि चीन इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद नाराज़ हो गया है. चीन ने बयान जारी कर कहा है कि ये रिपोर्ट अमेरिका की पोल खोल रही है, इससे साबित हो रहा है कि अमेरिका भारत का सहारा लेकर दक्षिण एशिया में अशांति फैलाना चाहता है.
BBC के मुताबिक इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पूरे इलाक़े में चीन, अमेरिकी गठबंधन को कमज़ोर कर ख़ुद बड़ा प्लेयर बनना चाहता है. भारत और चीन में जारी तनाव के बीच ट्रंप प्रशासन की एक कथित गोपनीय रिपोर्ट सार्वजनिक होने से हलचल बढ़ गई है. अमेरिकी वेबसाइट एक्सिओस ने कहा है कि उसने उस रिपोर्ट की कॉपी देखी है, जिसमें अमेरिका अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीति में भारत को आगे बढ़ाना चाहता है ताकि चीन से मुक़ाबला किया जा सके. खुलासे के मुताबिक साल 2018 की शुरुआत में ट्रंप प्रशासन ने 10 पन्ने की एक रिपोर्ट तैयार की थी. इसमें इंडो-पैसिफ़िक इलाक़े में पिछले तीन सालों में चीन, भारत और उत्तर कोरिया के अलावा बाक़ी के देशों को लेकर रणनीति का ज़िक्र है.
चीन से मिलकर निपटेंगे भारत और अमेरिका
इस दस्तावेज़ में चीन को चिंता के तौर पर रेखांकित किया गया है. इसके बाद उत्तर कोरिया को भी इसी रूप में देखा गया है. दस्तावेज़ की रणनीति में इस बात पर ज़ोर है कि चीन से मुक़ाबला करने के लिए इलाक़े के वैसे देशों से गठजोड़ करने की ज़रूरत है जो उदार अर्थव्यवस्था वाले हैं और अमेरिका के साथ मिलकर काम करते हैं. दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी एशिया में चीन के विस्तार को रोकने के लिए भारत के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाने की बात कही गई है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मज़बूत भारत से चीन की बढ़ती ताक़त को संतुलित किया जा सकता है. रिपोर्ट में रूस के बारे में कहा गया है कि वो इस इलाक़े में हाशिए पर है. नी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता की नियमित प्रेस कॉन्फ़्रेंस में शिन्हुआ न्यूज़ एजेंसी ने इसी से जुड़ा सवाल पूछा.
चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता चाओ लिजिअन ने इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद कहा, ‘कुछ अमेरिकी नेता चाहते हैं कि वो अपनी विरासत गोपनीय दस्तावेज़ों के ज़रिए छोड़कर जाएं. लेकिन इन दस्तावेज़ों से अमेरिका के बुरे इरादे ही खुलकर सामने आते हैं. अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति चीन को रोकने और दबाने के लिए है. ये इलाक़े की शांति और स्थिरता को भंग करना चाहते हैं. यह अधिनायकवाद की रणनीति है. मैं इसमें कम से कम तीन बड़ी ग़लतियों को रेखांकित कर सकता हूं.
पहला यह कि यह शीत युद्ध वाली मानसिकता है. सैन्य टकराव को उकसाने वाली रणनीति है. यह रणनीति क्षेत्रीय पारस्परिक फ़ायदे वाले सहयोग को नष्ट करने के लिए है. यह क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और संपन्नता को नष्ट करने के लिए है. दरअसल, इन्हें इतिहास के डस्टबीन में डाल देना चाहिए. अमेरिका क्षेत्रीय शांति को समस्याग्रस्त करना चाहता है. उसका असली चेहरा खुलकर सामने आ गया है.’ चीन पहले भी आरोप लगाता रहा है कि भारत और चीन के बीच दूरियां बढ़ाने में अमेरिका की बड़ी भूमिका रही है.
भारत को बताया समझदार
चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा, ”हमलोग का मानना है कि इस इलाक़े के देश पर्याप्त समझदार और सतर्क हैं. उन्हें अमेरिका अपने प्रभुत्व को कायम रखने के लिए हाईजैक नहीं कर सकता है. दूसरी बात यह कि अमेरिकी सरकार ताइवान के मामले में अपनी ही प्रतिबद्धता का उल्लंघन कर रही है. वन चाइना दुनिया की हक़ीक़त है और ताइवान उसका अभिन्न हिस्सा है.
चीन ताइवान के मामले में किसी भी तरह के विदेशी हस्तक्षेप से लड़ने के लिए तैयार है. ताइवान के भीतर भी अलगाववादी शक्तियों से मुक़ाबला करेंगे. हम अपनी संप्रभुता की रक्षा करने में सक्षम हैं. ताइवान को चीन में मिलाने से रोकने की हर अमेरिकी कोशिश नाकाम साबित होगी. मैं अमेरिका से आग्रह करता हूं कि वो वन चाइना पॉलिसी का पालन करे. अमेरिका अगर चाहता है कि ताइवान स्ट्रेट में शांति और स्थिरता बनी रहे तो वो इस मामले में ना पड़े.”