कैथल
दीवाली का त्यौहार नजदीक आ चुका है। उससे पहले ही मिठाई विक्रेताओं के कारखानों पर बड़े पैमाने पर मिलावटी मिठाई बनाने का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। कुछ दुकानदार मोटा मुनाफा कमाने के चक्कर में लोगों की सेहत से खिलवाड़ कर रहे हैं। हालांकि इसे रोकने के लिए खाद्य सुरक्षा व स्वास्थ्य विभाग बड़े-बड़े दावे कर करते हों, लेकिन जिस तरह पूरे जिले में मिलावटी खाद्य पदार्थों की धड़ल्ले से बिक्री की जा रही है, इसे रोक पाना विभाग व जिला प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है। जिस अधिकारी पर मिठाइयों की गुणवत्ता जांचने की जिम्मेदारी है, उसके पास कैथल के साथ-साथ पंचकूला व हिसार जिले का भी चार्ज है। इस कारण एक हफ्ते में जिलेभर से केवल 27 सैम्पल ही लिए गए हैं, जिनका रिजल्ट आने में भी लगभग 2 सप्ताह का समय लगेगा, तब तक सभी त्यौहार जा चुके होंगे।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि क्या इस तरह मिलावटखोरों पर रोक लग पाएगी?
बता दें कि शहर में प्रतिवर्ष मिलावटी मिठाइयों के मामले सामने आते रहे हैं, लेकिन अधिकतर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी उस समय जांच अभियान चलाते हैं जब दुकानदार बड़े पैमाने पर मिठाइयों को बेच चुके होते हैं। ऐसे में मिलावटी मिठाइयों से लाखों-करोड़ों कमाने वाले मिलावटखोर विभाग को 10-20 हजार रुपए जुर्माना देकर साफ बच निकलते हैं और फिर से उसी धंधे में जुट जाते हैं। डॉक्टरों की राय मानें तो ज्यादातर खाद्य एवं रंगों से बनी मिठाइयां गंभीर किस्म के रोग का कारण बन सकती है। मिठाई बनाने के लिए शुद्ध दूध की कमी है। कई जगह कैमिकल्स से मिठाई बनाने के मामले भी सामने आ चुके हैं। यही कारण है कि पर्व के बाद अस्पतालों में पहुंचने वाले लोगों की संख्या बढ़ जाती है।
मिलावटी खाद्य पदार्थों के सामने आई कई मामले
बता दें कि पिछले सालों में कैथल में मिलावटी खाद्य पदार्थों के दर्जनों मामले सामने आ चुके हैं। कैथल में जहां मिलावटी पनीर तथा निम्न स्तर के रसगुल्ले पाए गए हैं, वहीं सी.एम. फ्लाइंग ने मिलावटी अचार की फैक्टरी भी पकड़ी थी। विभागीय आंकड़ों के अनुसार इस साल अब तक लिए गए 186 सैम्पलों में से 32 सब-स्टैंडर्ड तथा 5 अनसेफ पाए गए हैं, जिनमें से अब तक किसी को सजा नहीं हुई है।
ट्रे पर लिखनी होती है तिथि
यदि मिठाई विक्रेताओं से संबंधित नियमों की बात करें तो दुकानदार मिठाई अधिक दिनों की नहीं बेच पाएं, इसके लिए सभी मिठाई के ट्रे पर तिथि अंकित करने के निर्देश दिए गए हैं, लेकिन मजे की बात है कि शहर में अधिकतर दुकानदारों की ट्रे पर कोई तिथि दर्ज नहीं है। मजे की बात यह भी है कि रसगुल्लों को ट्रे नहीं, बल्कि टब में रखा जा रहा है। दीवाली को लेकर मिठाइयों की खपत कई गुना बढ़ जाती है, इसलिए मिठाइयों में चीनी का अधिक इस्तेमाल तो होता ही है, इसमें इस्तेमाल रंग भी सेहत के लिए नुक्सानदायक है।
मिठाइयों में ऐसे मिलावट करते हैं दुकानदार
दीवाली पर बनने वाली मिठाइयों में घटिया किस्म के मावे में उबला हुआ आलू, मैदा की भारी मात्रा में मिलावट कर मिठाइयां तैयार की जा रही हैं। कुछ मिठाइयों में अवधि पार ग्लूकोज पाऊडर, बेसन, सूजी, मैदा एवं रंग-बिरंगे कलर डालकर रंग-बिरंगी बर्फी आदि कई तरह की मिठाई बनाकर मार्कीट में खपाने की तैयारी चल रही है। अधिकांश मिठाइयां सेहत को नुक्सान पहुंचाने वाली है। हद तो यह है कि मिठाइयों को रंग-बिरंगी बनाने में घातक रसायन का उपयोग भी खुलेआम हो रहा है।