उत्तराखंड में बारिश और बर्फबारी में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है. हाल के कुछ सालों के आंकड़े यह स्पष्ट भी करते हैं. वर्ष 2019 की सर्दियों में सबसे ज्यादा सामान्य से 99% अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई थी. वहीं, साल 2020 भी ठीक-ठाक. इस दौरान जनवरी-फरवरी में सामान्य से 68% अधिक वर्षा दर्ज की गई थी.
उत्तराखंड (Uttarakhand) के चमोली (Chamoli) में आई जलप्रलय से बची तबाही की वजह जहां संभावित रूप से बारिश (Rain) एवं बर्फबारी (Snowfall) की वजह से एवलांच को माना जा रहा है, वहीं, इस बीच मौसम के आंकड़े कुछ अलग बातें बयां करते हैं. उत्तराखंड के हालिया मौसम विश्लेषण में यह बात सामने आई है कि राज्य में इस साल सर्दियों में बारिश और बर्फबारी सामान्य से बेहद कम हुई है. करीब 33% कम. 2019 और 2020 को छोड़ दें तो आंकड़े और चिंता पैदा करते हैं. यह बताते हैं कि 2016 से 2021 (साल 2019-2020 को छोड़कर) उत्तराखंड में 60 फीसदी से भी कम बारिश और बर्फबारी हुई है.
निजी मौसम पूर्वानुमान एजेंसी स्काईमेट के चीफ मीटरोलॉजिस्ट महेश पालावत में इस बारे कहते हैं, ‘इस साल 1 जनवरी से 10 फरवरी के बीच उत्तराखंड के मौसम का विश्लेषण करने पर पाया गया है कि सर्दियों में बारिश और हिमपात सामान्य से 33 प्रतिशत तक कम हुआ है’. वह बताते हैं कि ‘उत्तराखंड में 1 जनवरी से पहले (1 अक्टूबर से लेकर 31 दिसंबर के बीच) भी बारिश और बर्फबारी की गतिविधियां सामान्य से कम रही हैं और यही रुझान इस समय जारी है’.
केवल उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में भी कमोबेश ऐसे ही मौसमी हालात देखने को मिले हैं. जम्मू कश्मीर की बात करें तो यहां इस दौरान सामान्य से 24% कम, जबकि हिमाचल प्रदेश में सामान्य से 56% कम वर्षा और बर्फबारी दर्ज की गई है.
उनका कहना है कि उत्तराखंड में बारिश और बर्फबारी में उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहा है. हाल के कुछ सालों के आंकड़े यह स्पष्ट भी करते हैं. उन्होंने बताया कि वर्ष 2019 की सर्दियों में सबसे ज्यादा सामान्य से 99% अधिक वर्षा रिकॉर्ड की गई थी. वहीं, साल 2020 भी ठीक-ठाक. इस दौरान जनवरी-फरवरी में सामान्य से 68% अधिक वर्षा दर्ज की गई थी.
हालांकि इसके पीछे चलें तो वर्ष 2016 से 2018 के बीच सामान्य से कम बारिश और कम बर्फबारी की हैट्रिक लगी थी. 2016 में सामान्य से 67% कम, 2017 में 53% कम और 2018 में 68% कम वर्षा और हिमपात की गतिविधियां देखने को मिली थीं.
दरअसल, इस आपदा की वजहों को लेकर विशेषज्ञों की राय अलग-अलग है. वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने शुरुआती आशंका जताई थी कि रैणी क्षेत्र में स्नो एवलांच के साथ ही ग्लेशियर टूटने की वजह से ही तबाही हुई. संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसके राय का कहना था कि ऊपरी क्षेत्रों में भारी बर्फ जमा होने के बाद तापमान कम होने से ग्लेशियर सख्त हो गए और उनमें क्षणभंगुरता भी बढ़ती गई. इस बात की भी आशंका है कि जिस क्षेत्र में आपदा आई वहां टो इरोजन होने की वजह से ऊपरी सतह तेजी से बर्फ और मलबे के साथ नीचे खिसक गई होगी. ऐसे में उत्तराखंड में बारिश और बर्फबारी के कम होने के बाद भी ऐसी प्राकृतिक आपदा के आने पर सवाल जरूर उठ रहे हैं. बहरहाल आपदा की असली वजह क्या है, इसका खुलासा वैज्ञानिकों की टीमों द्वारा किए गए अध्ययन के बाद ही पता चलेगा.