भारतीय रुपया मंगलवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले नौ महीने के सबसे निचले स्तर 75.4 पर पहुंच गया है. भारत के रुपये (Indian Currency) में पिछले तीन हफ्तों में लगभग 4.2 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है. जो कि आर्थिक मोर्चे पर बेहद चिंताजनक है. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 32 पैसे और टूटकर नौ महीने के निचले स्तर 75.05 रुपये प्रति डॉलर पर पहुंच गया. बाजार से जुड़े लोगों का अनुमान है कि यह जल्द ही 76 रुपये प्रति डॉलर तक पहुंच जाएगा. आपको कोविड -19 मामलों और आरबीआई (RBI)की घोषणा में तेज वृद्धि के साथ पिछले तीन सप्ताह में रुपया काफी दबाव में आया. जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था की वसूली में देरी और सामान्यीकरण को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं रुपये में गिरावट आई है.
जानें क्यों गिर रहा है रुपया?
22 मार्च को रुपया 72.38 से USD के स्तर पर ट्रेड कर रहा था. मंगलवार को (दोपहर के कारोबारी घंटे) 75.42 के स्तर तक फिसल गया. इससे तीन सप्ताह के मामले में 4.2 प्रतिशत की गिरावट देखी गई. मंगलवार को, यह एक डॉलर के 43 पैसे टूटे और नौ महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया. पिछले छह दिन में रुपए में 193 पैसे की गिरावट दर्ज की गई. डेटा के मुताबिक, पिछले तीन हफ्तों में रुपया सबसे बड़े नुकसान में से एक रहा है. सबसे बड़ी वजह कोरोना के बढ़ते मामले हैं. साथ ही देश भर में आर्थिक गतिविधियों पर इसके प्रभाव पर चिंता बढ़ रही है.
जानें क्या होगा आप पर असर?
रुपए में कमजोरी का असर इकोनॉमी से लेकर आम आदमी तक पर पड़ता है. सबसे बड़ा असर तो ये होता है कि इससे पेट्रोल और डीजल की लागत बढ़ जाती है. रुपए में कमजोरी से आयातित वस्तुओं की कीमत बढ़ जाएगी. डॉलर के मुकाबले, रुपए में गिरावट की वजह से सामानों के आयात के लिए ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी, जिससे बाहर से आनेवाली चीजों के दाम बढ़ जाएंगे.इसके अलावा विदेश में घूमने-फिरने या पढ़ने का खर्च भी ज्यादा हो जाएगा
भारत अपनी पेट्रोलियम जरूरतों का 80 फीसदी हिस्सा इम्पोर्ट करता है. इसका भुगतान विदेशी मुद्रा में होता है. इसलिए इसे खरीदने के लिए अब ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी और इस वजह से पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स की कीमत बढ़ जाएगी. वहीं दूसरी तरफ रुपए में गिरावट का फायदा निर्यातकों को मिलेगा. खास तौर पर आईटी, जेम्स एवं ज्वैलरी, फार्मा और टेक्सटाइल सेक्टर फायदे में रहेगा.