पाकिस्तान (Pakistan) के परमाणु कार्यक्रम (Nuclear Programme) और योजना को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. मौजूदा अमेरिकी (United States) सरकारी दस्तावेज के अनुसार अमेरिकी विदेश विभाग को पाकिस्तान की ओर से जनवरी 1979 को गैस सेंट्रीफ्यूज टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से चलाए जा रहे यूरेनियम समृद्ध कार्यक्रम की पूरी जानकारी थी. इसके साथ ही अमेरिकी विदेश विभाग को काहूटा में उसके एक ठिकाने का भी पता था.
सरकारी गोपनीयता को चुनौती देने वाले एक गैर-सरकारी संगठन नेशनल सिक्योरिटी आर्काइव ने उस समय के दस्तावेज, विदेश विभाग के स्मृति पत्र और आंतरिक स्मृति पत्रों को मंगलवार को जारी किया है. दस्तावेजों से पता चलता है कि कार्टर प्रशासन भी पाकिस्तान को बहुत अधिक धक्का नहीं देना चाहता था क्योंकि उसने इसे सोवियत-साझेदार भारत के प्रतिकार के रूप में देखा था.
पूर्वी और दक्षिणी एशियाई मामलों के तत्कालीन सहायक विदेश मंत्री हैरोल्ड सौंन्डर्स व ओशंस, इंटरनेशनल एनवायरमेंटल एंड साइंटिफिक अफेयर्स के सहायक विदेश मंत्री थॉमस पिकरिंग ने तत्कालीन विदेश मंत्री साइरस वांस को जनवरी 1979 को लिखा इस संबंध में लिखा था. उन्होंने कहा था, ‘पाकिस्तान तेजी से और गुप्त रूप से परमाणु दक्षता के निर्माण की ओर बढ़ रहा है, जो शायद उसे दो से चार साल के भीतर परमाणु विस्फोटक क्षमता प्रदान करेगा.’
पाकिस्तान ने भारत द्वारा पोकरण-2 परीक्षणों के जवाब में लगभग 20 साल बाद 1998 में.परमाणु हथियारों का परीक्षण किया और अपने कार्यक्रम को सार्वजनिक किया. पाकिस्तान ने संयोगवश 1974 में ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा के साथ अपनी परमाणु क्षमताओं का पहली बार खुलासा किया था.
तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति कार्टर को पाकिस्तान को लेकर दुविधा का सामना करना पड़ा था क्योंकि नेशनल सेक्योरिटी आर्काइव ने जनवरी 1979 के एक अन्य राज्य टेलीग्राम का हवाला देते हुए कहा, ‘हम (कार्टर की देखरेख में अमेरिका) ईरान में क्रांति और अफगानिस्तान में बढ़ते सोवियत प्रभाव के मद्देनजर इस्लामाबाद के अधिक मददगार बनना चाहते हैं.
इसके अलावा नेशनल सेक्योरिटी आर्काइव ने दस्तावेज में काहूटा का जिक्र करते हुए और बिना नाम लिए कहा कि पाकिस्तानियों के पास 7,000 यूनिट की योजना है. पाकिस्तान ने संयंत्र के लिए उपकरण हासिल करने के लिए भवनों का निर्माण शुरू कर दिया है.