वैसे तो पृथ्वी की सतह का तीन चौथाई हिस्सा पानी (Water) से घिरा है, लेकिन फिर भी दुनिया का केवल एक प्रतिशत पानी ही इंसानों के पीने के योग्य (Drinking Water) है. आज भी दुनिया के बहुत से हिस्सों में पीने लायक पानी उपलब्ध कराना एक बहुत बड़ी चुनौती है. वहीं बहुत सी जगहों पर साफ पानी भी उलब्ध नहीं है. पानी साफ करने की तकनीकों पर भी बहुत काम हो रहा है. अब भारतीय शोधकर्ताओं ने ऐसे नए बैक्टीरिया (Bacteria) की खोज की है जिसमें पानी से हानिकारक घातु हटा कर उसे पीने योग्य बनाने की क्षमता है.
इस बैक्टीरिया की खोज बनारस हिंदू यूनिवर्सी में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने की है. इस अध्ययन में दर्शाया गया है कि कैसे बैक्टीरिया की छन्नी संक्रामक जगहों पर पानी में से जहरीले हेक्सावेलेन्ट क्रोमियम को हटा देती है. हेक्सावेलेन्ट क्रोमियम वह भारी धातु का आयन है जो इंसानों में कई तरह के कैंसर के अलावा किडनी और लीवर की गड़बड़ी सहित बहुत सारी स्वास्थ्य जटिलताएं ला सकता है.
कहां से मिला बैक्टीरिया
शोधकर्ताओं ने मध्य प्रदेश में सिंगरौली के बला नाला से दूषित पानी लिया और उसमें से यह बैक्टीरिया अलग किया. इस नाले में कोयले की खदान से निकला हुआ पानी उपचार के बाद छोड़ा जाता है. इस अध्ययन में खोजए गए बैक्टीरिया को माइक्रोबैक्टीरियम पैरा ऑक्सीडैन्स स्ट्रेन (VSVM IIT (BHU)) नाम दिया गया है.
परंपरागत तरीकों से ज्यादा कारगर
इस अध्ययन की अगुआई करने वाले डॉ विशाल मिश्र ने और उसने पीएचडी छात्र वीर सिंह ने बताया कि नया बैक्टीरिया स्ट्रेन बड़ी तादात में हेक्सावलेन्ट क्रोमियम अवशोषित करने की क्षमता रखता है. इस बैक्टीरिया को दूषित पानी में से हेक्सावेलेंट क्रोमियम हटाने के लिए परंपरागत तरीकों की तुलना में बहुत ही ज्यादा प्रभावी माना गया है.