जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का सबसे बड़ा प्रभाव ग्लोबल वार्मिंग ही है. इसके लिए ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन जिम्मेदार माना जाता है. इन गैसों में CO2के बाद मीथेन गैस (Methane) का स्थान आता है. CO2 की तुलना में कम होने के बाद भी मीथेन कई गुना ज्यादा ऊष्मा अवशोषित करती है. यही वजह है कि विश्व जलवायु सम्मेलन में मीथेन के उत्सर्जन को कम करने पर जोर दिया गया है. दुनिया में 40 प्रतिशत मानव जनित मीथेन उत्सर्जन कृषि से आता है इसमें से अधिकांश जानवरों खासकर गायों (Cows) के गोबर और उनकी डकार आदि का योगदान है. इस वजह से वैज्ञानिक और पर्यावरणविदों के ले गाय की गैस और डकार चिंता का विषय बने हुए हैं.
गायों की अहमियत
गाय इंसानों के लिए सबसे प्रमुख पालतू जानवरों में से एक है. उसका दूध इंसानों के लिए पौष्टिक होता है. इतना ही नहीं दुनिया के कुछ देशों में गाय मांस उद्योग का प्रमुख हिस्सा भी है. आज भी भारत जैसे देश में गाय बैल कृषि क्षेत्र के संचालन में प्रमुख हिस्सा हैं. वे केवल दूध देने का काम ही नहीं करती हैं, बल्कि खेत जुताई, बैलगाड़ी आदि जैसे कार्यों में भी काम आती हैं. दुनिया भर के गायों से जितना मीथेन उत्पादन होता है वह CO2 की तुलना में एक चौथाई ज्यादा अधिक प्रभावी होता है.
जलवायु सम्मेलन में मीथेन उत्सर्जन
इस साल ग्लासगो में हुए जलवायु सम्मेलन में CO2 के साथ-साथ मीथेन पर ध्यान देने की बात उठी थी. सम्मेलन में जो दुनिया के देशों ने स्वैच्छिक रूप वैश्विक स्तर पर मीथेन कम करने का संकल्प लिया है. इसके तहत ये देश 2030 तक मीथेन उत्सर्नज में 30 प्रतिशत तक कटौती करेंगे. इस संकल्प में चीन, भारत और रूस शामिल नहीं हैं. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के निदेशक का कहना था कि मीथेन उत्सर्जन कम करना अगले 25 सालों में जलवायु परिवर्तन कम करने का सबसे प्रभावी तरीका होगा.