विदेश मंत्री जयशंकर ने भारतीय लोकतंत्र में हस्तक्षेप के लिए पश्चिमी मीडिया को लगाई लताड़
नई दिल्ली। भारत का आम चुनाव एक पर्व की तरह होता है। इस चुनाव को कवर करने के लिए भारत के साथ-साथ विदेशी मीडिया भी उतना ही लालायित रहता है। इस बार भी आम चुनाव का बिगुल बज चुका है। सात चरणों में होने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान हो चुका है। अब भारत के मतदाता दूसरे चरण के मतदान के प्रति अपना रुख कर रहे हैं। देश के इस चुनाव को कवर करने के लिए कई विदेशी मीडिया भारत आ रहे हैं। कई लेख भी लिखे जा रहे हैं। पूरी तरह से ग्लोबल हो चुके इस आम चुनाव की कवरेज को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने पश्चिमी मीडिया के रोल पर बेबाक टिप्पणी की है। एस जयशंकर ने भारतीय लोकतंत्र में हस्तक्षेप के लिए पश्चिमी मीडिया को लताड़ लगाई है।
विदेश मंत्री ने कहा कि पश्चिमी मीडिया चुनाव में खुद को राजनीतिक खिलाड़ी मानता है। रिपोर्ट के मुताबिक, हैदराबाद में एक मंच को संबोधित करते हुए विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि मुझे पश्चिमी प्रेस से बहुत सारी बातें सुनने को मिलती हैं और अगर वे हमारे लोकतंत्र की आलोचना करते हैं, तो ऐसा इसलिए नहीं है, क्योंकि उनके पास जानकारी की कमी है। वे ऐसा इसलिए है, क्योंकि उन्हें लगता है कि वे हमारे चुनाव के राजनीतिक खिलाड़ी हैं। जयशंकर ने पश्चिमी मीडिया में छपे एक लेख का जिक्र करते हुए कहा कि जिसका लब्बोलुआब यह था कि भारत में इतनी गर्मी में चुनाव क्यों कराए जा रहे हैं? जयशंकर ने कहा कि मैंने वह लेख पढ़ा। मैं उन्हें कहना चाहता था कि उस गर्मी में मेरा सबसे कम मतदान आपके सबसे अच्छे दौर में सबसे अधिक मतदान से अधिक है।
विश्व स्तर पर फैली है ‘मोदी की गारंटी’
हैदराबाद। एस जयशंकर ने दावा किया है कि ‘मोदी की गारंटी’ भारत की सीमाओं से परे है और इसका वैश्विक स्तर पर महत्त्व है। डा. जयशंकर ने भगवान हनुमान की तुलना एक कूटनीतिक आदर्श के रूप में की तथा अपने नागरिकों के कल्याण और सुरक्षा के लिए भारत की प्रतिबद्धता पर जोर देते हुए विदेश नीति निर्णयों में राष्ट्रीय हित को सबसे आगे रखने के महत्त्व को रेखांकित किया। वैश्विक मामलों में डा. जयशंकर ने उन उदाहरणों का उल्लेख किया जहां भारत ने संकट के समय देशों को समर्थन दिया, जिसमें प्रशांत और कैरेबियाई क्षेत्र भी शामिल थे। उन्होंने चुनौतियों का सामना कर रहे देशों के साथ समावेशिता और एकजुटता की वकालत करते हुए भारत की विदेश नीति के नैतिक आयाम पर जोर दिया तथा ऐतिहासिक चुनौतियों के परिप्रेक्ष्य में चीन को दीर्घकालिक ङ्क्षचता के रूप में रेखांकित किया।