एलएलबी कोर्स से जुड़ी याचिका पर नाराज सीजेआई चंद्रचूड़ की दोटूक
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने उस जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें केंद्र और बार काउंसिल ऑफ इंडिया को 12वीं कक्षा के बाद मौजूदा पांच साल के एलएलबी पाठ्यक्रम की जगह तीन साल के पाठ्यक्रम संचालन की व्यवहार्यता तलाशने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा कि पांच वर्षीय एलएलबी (बैचलर ऑफ लॉ) पाठ्यक्रम सही चल रहा है और इसमें छेड़छाड़ करने की कोई जरूरत नहीं है। वकील एवं याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह की दलीलें सुनने के बाद सीजेआई ने कहा कि याचिका वापस लेने की अनुमति दी जाती है। सीजेआई ने कुछ नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि तीन साल का कोर्स भी क्यों हो। वे हाईस्कूल के बाद ही वकालत शुरू कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि पांच साल भी कम हैं। वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि ब्रिटेन में भी कानून का पाठ्यक्र तीन साल का है और यहां पांच साल का एलएलबी पाठ्यक्रम गरीबों, विशेषकर लड़कियों के लिए निराशाजनक है।
सीजेआई ने दलीलों से असहमति जताई और कहा कि इस बार 70 प्रतिशत महिलाएं जिला न्यायपालिका में आईं और अब अधिक लड़कियां कानून के क्षेत्र में आ रही हैं। श्री सिंह ने इस संबंध में बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) को अभ्यावेदन देने की छूट के साथ जनहित याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी। पीठ ने इसे अस्वीकार कर दिया और केवल जनहित याचिका वापस लेने की अनुमति दी। जनहित याचिका में तीन साल के एलएलबी पाठ्यक्रम की व्यवहार्यता का पता लगाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित करने के लिए बीसीआई और केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। वर्तमान में, छात्र प्रमुख राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों (एनएलयू) द्वारा अपनाए गए कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (सीएलएटी) के माध्यम से कक्षा 12 के बाद पांच वर्षीय एकीकृत कानून पाठ्यक्रम में प्रवेश ले सकते हैं। छात्र किसी भी विषय में स्नातक करने के बाद तीन साल का एलएलबी कोर्स भी कर सकते हैं।