कल्पना चावला के पिता बनारसी लाल चावला उन्हें मंटू कहकर बुलाते थे. नेशनल जियोग्राफिक चैनल के एक की डॉक्यूमेंट्री शूट के दौरान कल्पना की मौत के 17 साल के बाद उनके पिता बनारसी लाल चावला ने उनके सपने का खुलासा किया है.
भारत की पहली महिला अंतरिक्ष यात्री (Astronaut) कल्पना चावला (Kalpana Chawla) ने जमीन के उस हिस्से से निकलकर दुनिया के सामने एक पहचान बनाई, जहां बेटियों को जन्म लेने तक नहीं दिया जाता था. नासा वैज्ञानिक और अंतरिक्ष यात्री कल्पना चावला का जन्म हरियाणा के करनाल में हुआ था. 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल के दुर्घटनाग्रस्त होने के साथ कल्पना की उड़ान रुक गई लेकिन आज भी वह दुनिया के लिए एक मिसाल हैं. उनके वे शब्द सत्य हो गए जिसमें उन्होंने कहा था कि मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूं.
कल्पना चावला के पिता बनारसी लाल चावला उन्हें मंटू कहकर बुलाते थे. नेशनल जियोग्राफिक चैनल के एक की डॉक्यूमेंट्री शूटके दौरान कल्पना की मौत के 17 साल के बाद उनके पिता बनारसी लाल चावला ने उनके सपने का खुलासा किया है. उन्होंने कहा कल्पना चाहती थी कि कोई भी बच्चा, खासकर लड़कियां, कभी भी शिक्षा से वंचित न रहें. उनके पिता का मानना है कि जितने अधिक लोगों को यह पता चलेगा कि उनकी बेटी वास्तव में कौन थी, उतना ही अधिक वे उसके जैसा बनने की ख्वाहिश रखेंगे.
ये अंतरिक्षयान आकाश में कैसे उड़ते हैं? क्या मैं भी उड़ सकती हूं?
कल्पना, जो कि करनाल में पैदा हुई थी, ने 1988 में नासा एम्स रिसर्च सेंटर में काम करना शुरू किया. 1997 में, वह अंतरिक्ष शटल कोलंबिया में अपनी उड़ान भरने वाली पहली भारतीय महिला और दूसरी भारतीय बनीं. 2000 में, कल्पना को STS-107 के चालक दल के एक भाग के रूप में उनकी दूसरी उड़ान के लिए चुना गया था, लेकिन यह उनकी आखिरी यात्रा थी. कल्पना के पिता उन्हें डॉक्टर या टीचर बनाना चाहते थे. परिजनों का कहना है कि बचपन से ही कल्पना की दिलचस्पी अंतरिक्ष और खगोलीय परिवर्तन में थी. वह अक्सर अपने पिता से पूछा करती थीं कि ये अंतरिक्षयान आकाश में कैसे उड़ते हैं? क्या मैं भी उड़ सकती हूं? पिता उनकी इस बात को हंसकर टाल दिया करते थे.
स्कूल में खाली वक्त बनाती थी पेपर प्लेन
कल्पना लगभग तीन या चार साल की थी जब उसने पहली बार एक विमान देखा था. उनके पिता कहते हैं, वह छत पर खेल रही थी जब उसने हमारे घर के ऊपर एक विमान को उड़ते देखा. वह बहुत उत्साहित लग रही थी. मैं उसे अपने घर के पास फ्लाइंग क्लब ले गया. जहां एक पायलट हमें सवारी के लिए ले जाने के लिए तैयार हो गया. उन्होंने कहा वो हमेशा से ही उड़ाना चाहती थी. बनारसी लाल चावला ने कहा, “जब कल्पना स्कूल में थीं, तो उनके शिक्षक बताते थे कि वह अपना खाली समय पेपर प्लेन बनाने और उन्हें उड़ाने में बिताती हैं. उनका हमेशा से यही शौक था. आखिरकार उसे अंतरिक्ष यात्री बनने के लिए प्रेरित किया.”
अपनी हाई स्कूल की शिक्षा पूरी करने के बाद, कल्पना ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई की, जहां उन्होंने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की. बनारसी लाल चावला ने कहा, “जब कल्पना चंडीगढ़ गईं, तो कॉलेज के प्रोफेसरों ने शुरू में उन्हें कोर्स से हटाने की कोशिश की. हालांकि उसके सपनों के आगे ऐसा नहीं हुआ.”
बनारसी लाल चावला ने कहा, “नासा में काम करते हुए कल्पना ने अच्छी कमाई की, लेकिन उसने कभी भी भौतिकवादी चीजों की परवाह नहीं की. वो अक्सर कहा करती थी कि वो अपना सारा पैसा शिक्षा से वंचित बच्चों की मदद करने पर खर्च करेगी. वह उन छात्रों तक पहुंचेगी जो वित्तीय बाधाओं के कारण अपनी शिक्षा पूरी करने में असमर्थ थे. जहां तक हो सकता था वो उन सबकी मदद करना चाहती थी.”