सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को रिपब्लिक टीवी चैनल चलाने वाली कंपनी (एआरजी आउटलॉयर मीडिया प्राइवेट लिमिटेड) और अर्नब गोस्वामी द्वारा दायर एक याचिका को सुनने से इनकार कर दिया। इसमें मुंबई पुलिस की ओर से रिपब्लिक टीवी के कर्मचारियों पर दर्ज एआईआर को रद्द करने की मांग की गई थी।
रिट याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की बेंच ने असंतोष व्यक्त किया और सुझाव दिया कि इसे वापस ले लिया जाए। अदालत ने इसे प्रकृति में महत्वाकांक्षी बताते हुए अन्य उपायों का पालन करने के लिए कहा है।
अदालत की टिप्पणी के बाद वापस ली गई याचिका
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मिलिंद साठे ने पीठ को बताया कि मुंबई पुलिस पिछले कुछ महीनों से चैनल और उसके कर्मचारियों के पीछे पड़े हैं और उनसे सुरक्षा की मांग करते हुए इसे दायर किया गया है। याचिका में संपादकीय टीम से जुड़े किसी भी सदस्य और अन्य कर्मचारी की गिरफ्तारी पर रोक की मांग की गई है। हालांकि, जस्टिस चंद्रचूड़ की टिप्पणी के बाद इसे वापस ले वापस ले लिया गया है।
इसलिए रिपब्लिक टीवी के खिलाफ दर्ज हुई थी एफआईआर
23 अक्टूबर को मुंबई पुलिस ने रिपब्लिक टीवी की संपादकीय टीम और कुछ एंकरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। इसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट में पुलिसकर्मियों में ‘विद्रोह’ की भ्रामक और झूठी जानकारी को प्रसारित किया था। एनएम जोशी मार्ग पुलिस स्टेशन में दर्ज प्राथमिकी में कहा गया है कि यह पुलिस बल के सदस्यों के बीच असंतोष पैदा करने और पुलिस की मानहानि के समान है।
इन चार लोगों पर दर्ज हुई नामजद एफआईआर
जिन लोगों पर यह एफआईआर दर्ज हुई है उनमें डिप्टी न्यूज एडिटर सागरिका मित्रा, एंकर शिवानी गुप्ता, डिप्टी एडिटर स्वान सेन और एग्जीक्यूटिव एडिटर नारायण स्वामी के नाम शामिल हैं। यह एफआईआर विशेष शाखा के उप निरीक्षक शशिकांत पवार की शिकायत पर पुलिस (असंतोष उत्पन्न करना) अधिनियम,1922 की धारा 3 (1) और भारतीय दंड सहिंता की धारा 500 (मानहानि) के तहत मामला दर्ज किया गया है।