डोनाल्ड ट्रम्प के दौर में अमेरिका और तालिबान के बीच अफगानिस्तान में हुआ शांति समझौता खतरे में पड़ गया। अमेरिका के नए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान ने शुक्रवार को कहा- अमेरिका-तालिबान पीस डील को रिव्यू किया जाएगा। पाकिस्तान को शायद इस फैसले का अंदेशा था। यही वजह है कि सुलिवान के बयान के पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा- अमेरिका को अफगान शांति समझौते और प्रक्रिया से पीछे नहीं हटना चाहिए।
ट्रम्प के कार्यकाल में फरवरी 2020 में अमेरिका और तालिबान ने अफगानिस्तान में शांति बहाली के लिए समझौता किया था। यह तब से ही विवादों में है। अफगान सरकार ने इसके कुछ पॉइंट्स पर ऐतराज जताया था। तालिबान ने भी हमले बंद नहीं किए।
तालिबान ने वादे पूरे नहीं किए
व्हाइट हाउस में नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल की प्रवक्ता एमिली हॉर्ने ने कहा- NSA जेक सुलिवान ने अमेरिका और तालिबान के बीच फरवरी 2020 में हुई पीस डील को रिव्यू करने के आदेश दिए हैं। इस मामले पर हमारा नजरिया बिल्कुल साफ है। तालिबान ने अपना कोई वादा नहीं निभाया। उसने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिससे अफगानिस्तान में हिंसा खत्म की जा सके। बातचीत में अफगानिस्तान सरकार को शामिल न किया जाना, हैरान करता है।
सही मायनों में शांति चाहिए
प्रवक्ता ने एक सवाल के जवाब में कहा- अफगानिस्तान के नेताओं को शांति और स्थिरता के लिए हो रही बातचीत में शामिल किया जाना चाहिए। हम वहां की महिलाओं, लड़कियों और अल्पसंख्यक समुदाय की जरूरतों को नजरअंदाज नहीं कर सकते। उन्हें भी शांति समझौते का हिस्सा बनाना चाहिए। इस बारे में अफगान सरकार और नाटो सहयोगियों से भी बातचीत की जाएगी।
पाकिस्तान परेशान
व्हाइट हाउस से आए बयान के पहले पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का बयान भी आया। उन्होंने कहा- बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन को अफगान पीस डील सुरक्षित रखना चाहिए। इसके बदलने या रद्द करना सही नहीं होगा। हम अमेरिका को बताएंगे कि अफगानिस्तान में कितने अवसर हैं। लंबे वक्त बाद हम सही दिशा में चल रहे हैं।
पाकिस्तान क्यों परेशान
पाकिस्तान के परेशान होने की एक बड़ी वजह यह है कि वो खुद को मध्यस्थ के तौर पर पेश कर रहा था। कुरैशी ने तीन बार तालिबानी नेताओं को विदेश मंत्रालय के गेट पर रिसीव भी किया। अमेरिका और अफगानिस्तान सरकार हमेशा से पाकिस्तान पर आरोप लगाती है कि तालिबान को वहां से मदद मिलती है और यह आतंकी संगठन इसी मदद से अफगानिस्तान में हमले करता है। अमेरिका ने पाकिस्तान में पनाह लेने वाले आतंकियों पर सैकड़ों ड्रोन हमले किए। पाकिस्तान इन हमलों का विरोध करता रहा।