राजस्थान

ग्राउंड रिपोर्ट:किसान की पत्नी बोली- ट्राली भरके प्याज सिर्फ 28 हजार में बेचना पड़ी, 5500 रु. तो तुड़ाई-ढुलाई में ही खर्च, मेहनत और बीज-दवा अलग ही है..

अलवर के विजय मंदिर निवासी नसरुद्दीन व रामवतार। पूरा परिवार खेते में प्याज तुड़ाई में जुटा है। गांव के कुछ साथी किसान आंदोलन में शामिल हुए हैं। इनके परिवार ने कहा कि प्याज को ही देख लीजिए। आज 12 से 15 रुपए किलो बिक रही है जो कभी 40 रुपए तक बिकी थी। करीब दो हजार किलो प्याज की एक ट्राली 28 से 30 हजार रुपए में नीलाम हो गई लेकिन इसका खर्च हमारी कम तोड़ रहा है। इतने प्याज की तुड़ाई में ही एक हजार रु., भराई में 500 रुपए और खाली बारदान पर ही तीन हजार रुपए (प्रति नग 50 से 60 रु. बारदान) खर्च हो रहे हैं। यानी 4500 रु. तो सिर्फ तुड़ाई, भराई और ढुलाई में ही जा रहे हैं। हमारी पूरे परिवार की महीनों की मेहनत, बीज और दवा का खर्च..। सोचिए हमें क्या बचता होगा। बावजूद सरकार है कि अपनी ही बातों पर अड़ी हुई है। गाजर का भी यही हाल है।

किसान की प्याज के भाव एक माह पहले तो कुछ दिनों के लिए 30 से 40 रुपए किलो थे। लेकिन, अब वापस भाव जमीन पर हैं और किसान मिट्टी धूल में लिपटा हुआ भीतर ही भीतर टूट रहा है। यही हाल गाजर का है। गाजर की खेती में भी खुदाई, भराई व भाड़े का करीब-करीब उतना ही खर्च हैं। लेकिन, कुछ दिन तो गाजर भी 40 रुपए किलो तक बिकी और अब वही गाजर किसानों को अपने पशुओं को खिलानी पड़ रही है। मतलब बाजार में इतना भाव भी नहीं मिल रहा है कि उसका भाड़ा व खर्च वसूल हो सके।

यही है किसानों के आंदोलन की वजह
दिल्ली समेत देश भर में चल रहे किसानों के आंदोलन की यही वजह है कि उनको उपज का दोगुना दाम तो दूर लागत भी नहीं मिल पाती है। किसान की पत्नी ने कहा हमार हाल देखिए, मिट्टी से लदे पड़े हैं। देर शाम को घर पहुंचते हैं। दिन भर प्याज की खुदाई करते हैं। एक कट्टा प्याज की खुदाई की मजदूरी 20 रुपए देते हैं। भराई 10 रुपए, खाली कट्टा 60 रुपए का आता है। बाजार ले जाने का भाड़ा अलग है। अब 500 से 600 रुपए में 40 किलो प्याज बिक जाती है। मुश्किल से 12 से 15 रुपए किलो भी नहीं बिक रही है।

प्याज का बीज कण 5 हजार रुपए किलो लेकर आए
किसान रामवतार ने कहा कि प्याज से अच्छी कमाई की आस होती है। तभी तो 5 हजार रुपए प्रति किले का कण बीज लेकर आते हैं। ताकि बढ़िया प्याज हो और अच्छे भाव मिले। दिन -रात सर्दी में सिंचाई से लेकर गुड़ाई में लगे रहते हैं। अब एक-एक प्याज को खेत से उखाड़ने और उसकी सफाई कर कट्टों में पैक करने में कई दिन खप जाते हैं। मण्डी में जाने के बाद ऐसा लगता है न उनकी मेहनत को कोई देख रहा न उनकी जरूरतों को कोई समझ रहा है। एक व्यापारी आता है और भाव छोड़ देता है। चाहे किसान को कुछ बचे या नहीं।

किसानों की भैंस खा रही गाजर
अब देखिए, नवम्बर माह में किसानो की गाजर 40 रुपए किलो तक बिकी। अब बानसूर के गांव गूंता निवासी किसान महेन्द्र के घर पर पशुओं को गाजर खिलानी पड़ रही है। किसान का कहना है कि मण्डी में लेकर जाते हैं तो 5 रुपए किलो भी नहीं बिक रही। भाड़ा व मेहनत भी नहीं आ रही। इस कारण मजबूरी में पशुओं को खिला रहे हैं। जबकि एक बीघा गाजर पैदा करने में 15 हजार रुपए से अधिक लागत आई है। मेहनत अलग है।

ग्राहकों को 40 रुपए किलो प्याज व 25 रुपए किलो गाजर मिल
दूसरी और किसानों से प्याज व गाजर खरीदने के बाद बाजार में आते ही भाव 4 गुना हो जाते हैं। मंगलवार के ही आम ग्राहक के भाव जान लिजिए। अब भी कॉलोनियों में प्याज 40 रुपए किलो और गाजर 20 रुपए किलो बेची जा रही है। लेकिन, किसान की प्याज 12 रुपए और गाजार 5 रुपए भी नहीं बिक रही।

यही है आंदोलन की वजह
अब आप देखिए किसान कितना पिस रहा है। उसके आर्थिक हालत क्यों नहीं सुधर रहे। दिखावे के लिए कुछ किसानों केा अच्छा भाव मिल जाता है। बाद में कोई पूछता नहीं है। आमजन को सब महंगा मिलता है। इसिलए सरकार से एमएसपी पर कानून बनाने के लिए आदोलन हो रहा है।

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